विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
पहला अध्याय
बाललीला
तृतीय प्रकरण
शिशुलीला
नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुतिभा[1]
हे कृष्ण! (आप निपट गोपाल नहीं हैं।) आपका स्वभाव अचिन्त्य है। आप परम पुरुष हैं क्योंकि आप सबके कारण (आद्य) हैं। (केवल निमित्त कारण ही नहीं किन्तु आप उपादान कारण भी हैं क्योंकि स्थूल-सूक्ष्मरूप यह जगत् आपका ही स्वरूप है, ऐसा ब्रह्मज्ञानी जानते हैं।।29।। (आप जगत् के नियन्ता भी हैं क्योंकि) आप सकल जीवों के देह, प्राण, अहंकार और इन्द्रियों के (अंतर्यामीरूप से) ईश्वर हैं। (शंका होती है कि इस संसार का काल निमित्त कारण है, प्रकृति उपादान कारण है और प्रकृति से उत्पन्न हुआ महत् जगत् के आकार से परिणत होता है तो कर्ता तथा नियन्ता पुरुष ही सिद्ध होता है। इसका समाधान डेढ़ श्लोक से करते हैं, आप तो अविकारी हैं और पुरुष आपका अंश है, महत से तृणपर्यन्त सब कार्य ही हैं, इस कारण) हे भगवान! आप ही काल हैं। (काल ही आपकी लीला है) आप ही विष्णु हैं और आप ही ह्रास और वृद्धि से शून्य (अव्यय) ईश्वर हैं।।30।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 10।10
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