विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
चौथा अध्याय
द्वारकालीला
सप्तम प्रकरण
जरासन्ध और शिशुपालादिका वध
कारागृहमुक्त राजा तथा युधिष्ठिरकृत स्तुति
इस वचन को सुनकर राजा जरासन्ध गद्गद हो गया, किन्तु उन तीनों के शरीर का गठन और हाथ में धनुष के खींचने से उत्पन्न हुए चिह्नों को देखकर सोचने लगा ‘शायद मैंने इनको कभी देखा है और ये ब्राह्मण नहीं हो सकते।’ अंत में दान की महिमा का विचारकर वह बोला- ‘हे ब्राह्मणो! जो तुम्हें रुचिकर हो उसे मांग लो, यदि मेरा मस्तक तुम्हें अच्छा लगेगा तो मैं उसे भी दे दूँगा।’ तत्पश्चात भगवान, भीम और अर्जुन ने अपना-अपना परिचय दिया और जरासन्ध से कहा कि हम द्वन्द्व करना चाहते हैं, हमसे से किसी के साथ युद्ध करो। इस पर जरासन्ध बड़ा हँसा और बोला- अरे मूढ़ो! यदि तुम्हें युद्ध भी अभीष्ट है तो उसे देता हूँ। किन्तु हे कृष्ण! तू डरपोक है और भय से मथुरा नगरी छोड़कर द्वार का भाग गया है, इस कारण तुझ से मैं न लड़ूँगा और न अर्जुन से लड़ूँगा क्योंकि वह मेरे वय और बल में समान नहीं है। हाँ, भीम से लड़ूँगा क्योंकि वह मेरे समान बलशाली है। ऐसा कहकर उसने भीमसेन को अपना शस्त्रगार दिखाया और उसमें से एक गदा छाँट लेने के लिए कहा। जरासन्ध एक गदा लेकर युद्ध के लिए उद्यत हुआ। यह युद्ध सत्ताईस दिन तक चलता रहा। रात्रि में ये तीनों जरासन्ध के घर में रहते थे। जरासन्ध ने आतिथ्य करने में किसी प्रकार की कोई कमी न रखी। अंत में भीम थक गया, उसने श्रीकृष्ण जी से अपना हाल कहा। तब भगवान् को जरासन्ध के जन्म-वृत्तान्त का स्मरण हो आया। जन्म समय में जरासन्ध के जन्म-वृत्तान्त का स्मरण हो आया। जन्म समय में जरासन्ध के शरीर के दो विभाग हुए थे। जरा नाम की राक्षसी ने उसके दोनों टुकड़ों को जोड़ दिया था। युद्ध के समय भगवान ने एक घास का तिन का उठाकर उसको बीच से फाड़ दिया। भीम ने संकेत समझकर मौका मिलने पर जरासन्ध के शरीर के दो टुकड़े कर दिये। जरासन्ध के मरने के पश्चात उसके पुत्र सहदेव का राज्याभिषेक कर दिया। बन्दी राजा छुड़वा दिये गये। इन राजाओं द्वारा की गयी स्तुति का इस प्रकरण के अंत में उल्लेख किया जाएगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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