भागवत स्तुति संग्रह पृ. 365

भागवत स्तुति संग्रह

चौथा अध्याय

द्वारकालीला
सप्तम प्रकरण
जरासन्ध और शिशुपालादिका वध

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कारागृहमुक्त राजा तथा युधिष्ठिरकृत स्तुति

इस वचन को सुनकर राजा जरासन्ध गद्गद हो गया, किन्तु उन तीनों के शरीर का गठन और हाथ में धनुष के खींचने से उत्पन्न हुए चिह्नों को देखकर सोचने लगा ‘शायद मैंने इनको कभी देखा है और ये ब्राह्मण नहीं हो सकते।’ अंत में दान की महिमा का विचारकर वह बोला- ‘हे ब्राह्मणो! जो तुम्हें रुचिकर हो उसे मांग लो, यदि मेरा मस्तक तुम्हें अच्छा लगेगा तो मैं उसे भी दे दूँगा।’

तत्पश्चात भगवान, भीम और अर्जुन ने अपना-अपना परिचय दिया और जरासन्ध से कहा कि हम द्वन्द्व करना चाहते हैं, हमसे से किसी के साथ युद्ध करो। इस पर जरासन्ध बड़ा हँसा और बोला- अरे मूढ़ो! यदि तुम्हें युद्ध भी अभीष्ट है तो उसे देता हूँ। किन्तु हे कृष्ण! तू डरपोक है और भय से मथुरा नगरी छोड़कर द्वार का भाग गया है, इस कारण तुझ से मैं न लड़ूँगा और न अर्जुन से लड़ूँगा क्योंकि वह मेरे वय और बल में समान नहीं है। हाँ, भीम से लड़ूँगा क्योंकि वह मेरे समान बलशाली है।

ऐसा कहकर उसने भीमसेन को अपना शस्त्रगार दिखाया और उसमें से एक गदा छाँट लेने के लिए कहा। जरासन्ध एक गदा लेकर युद्ध के लिए उद्यत हुआ। यह युद्ध सत्ताईस दिन तक चलता रहा। रात्रि में ये तीनों जरासन्ध के घर में रहते थे। जरासन्ध ने आतिथ्य करने में किसी प्रकार की कोई कमी न रखी। अंत में भीम थक गया, उसने श्रीकृष्ण जी से अपना हाल कहा। तब भगवान् को जरासन्ध के जन्म-वृत्तान्त का स्मरण हो आया। जन्म समय में जरासन्ध के जन्म-वृत्तान्त का स्मरण हो आया। जन्म समय में जरासन्ध के शरीर के दो विभाग हुए थे। जरा नाम की राक्षसी ने उसके दोनों टुकड़ों को जोड़ दिया था। युद्ध के समय भगवान ने एक घास का तिन का उठाकर उसको बीच से फाड़ दिया। भीम ने संकेत समझकर मौका मिलने पर जरासन्ध के शरीर के दो टुकड़े कर दिये। जरासन्ध के मरने के पश्चात उसके पुत्र सहदेव का राज्याभिषेक कर दिया। बन्दी राजा छुड़वा दिये गये। इन राजाओं द्वारा की गयी स्तुति का इस प्रकरण के अंत में उल्लेख किया जाएगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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