विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
तीसरा अध्याय
किशोरलीला
चतुर्थ प्रकरण
मथुरा छोड़ना
मुचुकुन्दकृत स्तुति
ममैष कालोऽजित निष्फलो गतो राज्यश्रियोन्नद्धमदस्य भूपतेः। (अब कहते हैं कि मेरी भी उन्हीं की सी दशा है जिनकी मैं निन्दा कर रहा हूँ) हे अजित! राज्य की संपदा से बढ़ा हुआ मदवाला मैं मरणशील शरीर को आत्मा समझकर पुत्र, स्त्री, भण्डार तथा भूमि में अत्यंत आसक्त रहा हूँ, मेरा यह काल राज्य आदि की अपार चिन्ता से निष्फल बीत गया है।।48।। (अपना मदोन्मत्त होना कहते हैं-) दुष्ट मद से युक्त हुआ और घट या भीत के समान अतितुच्छ इस जड़ देह में राजा का अभिमान रखने वाला मैं रथ, हाथी, घोड़े और पैदल सेनासहित भूमि में कालरूप आपको कुछ न गिनकर, विचरता रहा। (इस कारण यह काल निष्फल गया)।।49।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज