विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
तीसरा अध्याय
किशोरलीला
प्रथम प्रकरण
वृन्दावन की शेष लीलाएँ
नारदकृत स्तुति[1]
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे अपरिच्छिन्नरूप! हे योगेश्वर! हे जगदीश्वर! हे वासुदेव! हे जगन्निवास! हे यादवश्रेष्ठ! हे प्रभो! आप जीवों की भाँति परिच्छिन्न नहीं हैं, किन्तु घट-घट-व्यापी एक आत्मा हैं। जैसे कष्ठों में अग्नि रहती है वैसे ही सब प्राणियों में आप स्थित हैं, तो भी अतिगूढ़ होने के कारण आपको वे नहीं देख पाते; क्योंकि आप बुद्धिरूप गुहा में रहने वाले सबके साक्षी महापुरुष ईश्वर हैं।।11-12।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भा. 10।37।
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