विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
तीसरा अध्याय
किशोरलीला
प्रथम प्रकरण
वृन्दावन की शेष लीलाएँ
नारदकृत स्तुति
व्रज के उपद्रव शांत हो गये। गोप सुखपूर्वक वहाँ रहने लगे। भगवान को अन्यत्र भी शान्ति स्थापित करनी थी; इसी कारण नारद ऋषि एक दिन एकान्त में भगवान् के समीप आगे का कार्यक्रम सूचित करने को आये। कई महानुभावों को कहना है कि नारद ऋषि भगवान के हृदय हैं। सब क्रियाएँ हृदय (मन) की प्रेरणा से होती हैं। यही कारण है कि भगवान के कार्य सिद्ध करने के लिए नारद जी कभी राक्षसों को सलाह देते हैं और कभी देवताओं को प्रेरणा करते हैं। इस समय नारद जी भगवान् की स्तुति करते हुए आगे कार्य की सूचना करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
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