विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
तीसरा अध्याय
किशोरलीला
प्रथम प्रकरण
वृन्दावन की शेष लीलाएँ
नारदकृत स्तुति
तदनन्तर सब ग्वालबालों सहित राम-कृष्ण का संहार करने के लिए केशी दैत्य गोकुल में भेजा गया। केशी दैत्य एक पर्वताकार अश्व का रूप धारण कर वृन्दावन में पहुँचा। वहाँ पहुँचकर उसने अपने पिछले पैरों से कमलनयन श्रीकृष्णचंद्र पर प्रहार किया। भगवान् ने उसके पैर पकड़े और उसे चारों ओर घुमाकर चार सौ हाथ की दूरी पर पटक दिया। इतने पर भी वह राक्षस मरा नहीं, कुछ देर के लिए मूर्च्छित होकर फिर भगवान् की तरफ मुँह फैलाकर दौड़ा। तब भगवान ने उसके मुँह में अपना हाथ दे दिया। उस हाथ को भगवान ने इतना कड़ा किया कि उसके दाँत उखड़ गये और प्राण घुटने लगे तब वह भूमि पर गिरकर मर गया। यह देखकर देवताओं ने भगवान के ऊपर फूल बरसाये और भगवान गोकुल को सुखी करते हुए गोपालों के साथ पशुओं की रक्षा करने लगे। एक समय श्रीकृष्ण और बलरामादि गौ चराने के लिए गोवर्धन पर्वत पर गये और वहाँ खेलने लगे। कोई मेढ़े बने, कोई उनको चुराकर छिपाने वाला बना और कुछ बालक रक्षक बने। इसी समय उस वन में मायासुर का पुत्र महामायावी व्योमासुर आया और गोप का वेष धारण कर उसने मेढ़े बने हुए गोपों को क्रम क्रम से किसी कंदरा में छिपाकर, उसका द्वार एक बड़ी शिला से बंद कर दिया। अंत में वहाँ पर मेढ़े बने हुए गोपों में केवल पाँच शेष रह गये। भगवान ने व्योमासुर का कर्म जानकर उसको इस प्रकार पकड़ लिया जैसे सिंह भेड़ियों को पकड़ लेता है। तब उस असुर ने गोपरूप को त्यागकर अपना पर्वताकार विशाल रूप धारण कर लिया; किन्तु वह अपने को छुड़ाने में समर्थ नहीं हुआ। अंत में भगवान ने उसे भूमि में पटककर घूँसों से मार डाला। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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