विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
दूसरा अध्याय
माधुर्यलीला
सप्तम प्रकरण
उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश
भ्रमरगीत
(शंका- इस समय ऐसा क्यों कहती है, पहले जबकि भगवान् तुम्हारे साथ एकान्त में क्रीड़ा करते थे उस समय तुमने उनसे क्यों नहीं कहा था? समाधान- हे दूत! इस बात को रहने दो) जैसे काले हिनर की भोली-भाली हिरनियाँ व्याध के मधुर गीत को सत्य समझती हुई उसके समीप जाकर उस कुटिल व्याध के बाणों से वेधित होकर दुख भोगती हैं, ऐसे ही हम कुटिल श्रीकृष्ण के वचनों को[1]सत्य मानती हुई उनके चरणांगुलि के नखों का स्पर्श करके उसके वियोग से दुःख भोगती हैं। इस कारण हे दूत! अब दूसरी कोई बात कहो?।।19।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वे वाक्य ऐसे है ‘न ममोदितपूर्वं वा अनृतम्’ ‘न पारयेऽहं निरवद्यसंयुजाम्।’
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