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भागवत स्तुति संग्रह
दूसरा अध्याय
माधुर्यलीला
सप्तम प्रकरण
उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश
भ्रमरगीत
(यद्यपि हम यह भलीभाँति जानती हैं कि कृष्ण की कथा भी धर्म, अर्थ और कामरूप लता को जड़ से उखाड़कर फेंक देने वाली है तथापि हम उसे छोड़ नहीं सकतीं; क्या करें- लाचार हैं, ऐसा कहती हैं-) कृष्ण के चरितरूपी अमृत बिन्दु का एक बार भी सेवन करने से जिनके राग-द्वेष आदि द्वंद्व धर्म नष्ट हो गये हैं, ऐसे बहुत से भोगहीन पुरुष तुरन्त दुखी हो अपने गृह, कुटुम्ब आदि को छोड़कर पक्षियों की भाँति इधर-उधर घूमकर प्राण रक्षा मात्र करते हैं। (इसलिए उनकी कथा हेय है तो भी हम उसे नहीं छोड़ सकतीं) निन्दा-पक्ष में श्रौत[1]अर्थ है। पारमार्थिक अर्थ यह है- श्रीकृष्ण भगवान् के चरितरूपी अमृतबिन्दु का एक बार भी आस्वाद लेने से जिनके राग द्वेष आदि द्वंद्व धर्म नष्ट हो गये हैं ऐसे हंसों की भाँति सार और असार के विवेक में निपुण महान् धीर बहुत से पुरुष उसी क्षण में तुच्छ गृह कुटुम्ब को छोड़कर परम हंसता धारण करते हैं। (अतएव परम पुरुषार्थरूप होने से श्रीकृष्ण भगवान् की कथा नहीं छोड़ी जा सकती है)।।18।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ते ह स्म पुत्रैषणायाश्च वित्तैषणायाश्च लोकैषणायाश्च व्युत्थायाथ भिक्षाचर्यं चरन्तिं। (बृ. 4।4।22)
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