भागवत स्तुति संग्रह पृ. 134

भागवत स्तुति संग्रह

दूसरा अध्याय

माधुर्यलीला
तृतीय प्रकरण
रास का आह्वान्

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नागपत्नियों द्वारा की हुई स्तुति


इस लीला से प्रकट होता है कि जिसको भगवान् चाहते हैं उसको स्वयं बुला लेते हैं, जैसे कि उन्होंने मुरली की ध्वनि से गोपियों को अपने पास बुला लिया था। भगवती श्रुति भी कहती हैं ‘यमेवैष वृणुते तेन लभ्यस्तस्यैष आत्मा विवृणुते तन् स्वाम्’ [1] बात ठीक ही है। भगवान का दर्शन कितना ही प्रयत्न करो नहीं हो सकता,[2] नारद जी के प्रति भगवान् ने ऐसा ही कहा[3]था। यह निश्चय है कि इन्द्रियों से या स्थूल शरीर से भगवत् प्राप्ति नहीं हो सकती। क्योंकि ये तो बाहर की वस्तुओं को ही विषय करते हैं। श्रुति में कहा है- ‘पराञ्चि खानि व्यतृणत्स्वयं भूस्तस्मात्परांङ् पश्यति नान्तरात्मन्’[4] यह श्रुति स्पष्ट रूप से कहती है कि बहिर्मुख हो जाना इन्द्रियों का स्वभाव है। इस नियम का उल्लंघन हो ही नहीं सकता क्योंकि जिसका जो स्वभाव है वह उसको नहीं छोड़ सकता। जब इन्द्रियाँ या स्थूल शरीर भगवान् को अपना विषय नहीं कर सकते तो क्या मन या बुद्धि उन्हें अपना विषय कर सकती हैं? श्रुतियों में यह भी कहा है ‘न तत्र चक्षुर्गच्छति न वाग्गच्छति नो मनो न विद्मो न विजानीमः’।[5] किन्तु यह श्रुति निर्विशेषब्रह्मपरक है, न कि सगुणब्रह्मपरक। यहाँ यह समझ लेना चाहिए कि जब मन काम, संकल्प इत्यादि से दूषित होता है तब भगवान को अपना विषय नहीं कर सकता। जब यही मन शुद्ध संस्कृत और वासनाशून्य हो जाता है तब भगवदाकार बन जाता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कठ. 1।2।23
  2. न तु मां शक्य से द्रष्टुमनेनैवस्वच्छक्षुषा।
    दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्यमे योगमैश्वरम्।।
    (गी. 11।8)
  3. माया ह्येषामया स्रष्टा यन्मा पश्यसि नारद।
    सर्वभूतगुणैर्युक्तं नैवं मां ज्ञातुमर्हसि।।
  4. कठ. 2।1।1
  5. केन. 1।1।3

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प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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