भागवत स्तुति संग्रह पृ. 135

भागवत स्तुति संग्रह

दूसरा अध्याय

माधुर्यलीला
तृतीय प्रकरण
रास का आह्वान्

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नागपत्नियों द्वारा की हुई स्तुति


उपर्युक्त कठकी श्रुति में ही कहा है- ‘कश्चिद्धीरः प्रत्यगात्मानमैक्षदावृत्तचक्षुरमृतत्त्वमिच्छन्।’ सिद्धांत यह हुआ कि मन जब शुद्ध सत्त्वगुणयुक्त होता है तब वह भगवदाकार हो जाता है। रासप्रकरण यही व्यक्त करता है कि जब मन में भगवान के अतिरिक्त और कुछ स्फुरण न हो तब भगवत्प्राप्ति समझो। यदि थोड़ा सा भी अभिमान हो गया तो भगवान फिर तिरोहित हो जायेंगे। देखो, जब गोपियाँ रास के मध्य में अभिमानयुक्त हुईं तो वे अपने असंस्कृत मन से भगवान को न देख सकीं। इस प्रकरण का अनुशीलन करने पर विदित होगा कि गोपियों ने मन को भगवदाकार बनाने के लिए बड़े प्रयत्न किये थे। जब वे कसौटी में ठीक उतर गयीं तब फिर रास क्रीड़ा हुई, जिसमें उनको पूर्णानन्द प्राप्त हुआ।

इस नृत्य में संसारी पुरुषों को अपनी वासनाओं के अनुसार प्रायः प्राकृत काम की गंध आती है। किन्तु आगे-पीछे के प्रकरणों को देखने से यह शंका निर्मूल ठहरती है। जो सर्वस्व त्यागकर भगवान के समक्ष में आयी हैं उनमें क्या प्राकृत कामवासना रह सकती है? फिर भगवान के साथ क्रीड़ा में दोष भी क्या हो सकता है? भगवान व्यास कहते हैं कि जिस प्रकार छोटा बालक अपने प्रतिबिम्ब के साथ क्रीड़ा करता है उसी प्रकार भगवान ने भी व्रजसुंदरियों के साथ क्रीड़ा[1]की थी। ये कितने महत्त्व के शब्द हैं, पाठक स्वयं विचार कर लें। यह रासनृत्य एक ऐसा अभिनय है जिससे मनुष्य समझ सकता है कि प्रेम क्या वस्तु है और किस प्रकार प्रेम से भगवत प्राप्ति हो सकती है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भा. 10।33।17

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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