विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
दूसरा अध्याय
माधुर्यलीला
तृतीय प्रकरण
रास का आह्वान्
नागपत्नियों द्वारा की हुई स्तुति
इस नृत्य में संसारी पुरुषों को अपनी वासनाओं के अनुसार प्रायः प्राकृत काम की गंध आती है। किन्तु आगे-पीछे के प्रकरणों को देखने से यह शंका निर्मूल ठहरती है। जो सर्वस्व त्यागकर भगवान के समक्ष में आयी हैं उनमें क्या प्राकृत कामवासना रह सकती है? फिर भगवान के साथ क्रीड़ा में दोष भी क्या हो सकता है? भगवान व्यास कहते हैं कि जिस प्रकार छोटा बालक अपने प्रतिबिम्ब के साथ क्रीड़ा करता है उसी प्रकार भगवान ने भी व्रजसुंदरियों के साथ क्रीड़ा[1]की थी। ये कितने महत्त्व के शब्द हैं, पाठक स्वयं विचार कर लें। यह रासनृत्य एक ऐसा अभिनय है जिससे मनुष्य समझ सकता है कि प्रेम क्या वस्तु है और किस प्रकार प्रेम से भगवत प्राप्ति हो सकती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भा. 10।33।17
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