विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
दूसरा अध्याय
माधुर्यलीला
तृतीय प्रकरण
रास का आह्वान्
नागपत्नियों द्वारा की हुई स्तुति
इस पर हमारा वक्तव्य यही है कि यदि ऐसा ही होता तो व्यास भगवान साफ-साफ क्यों न कह देते? अध्याय 28 के अंतिम भाग में यह स्पष्ट लिखा है कि वैकुण्ठ लोक देखने पर श्रीकृष्ण भगवान ने गोपों को समाधि से जगाया, तब वे निद्रा से जगे हुए की भाँति विस्मय में आ गये। इसके उपरान्त रासलीला का प्रकरण आता है। व्यास भगवान जहाँ कोई उपलक्षण कहते हैं, वहाँ उस विषय को स्पष्ट भी कर देते हैं, जैसा कि पुरञ्जन के इतिहास से प्रतिपादन किया है।[3] हमारा मत यही है कि श्रीमद्भागवत में जो स्थल जैसा है उसको वैसा ही प्रकट करना चाहिए। श्रीमद्भागवत के द्रष्टा पूज्यपाद स्वामी श्रीधरजी स्पष्ट कहते हैं कि ‘ता रात्रीः’ शब्द का अर्थ 22 अध्याय के श्लोक 27 वें कहे हुए ‘इमाः’ अर्थात् शरद्-ऋतु की रात्रियाँ थीं।[4] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ इसी प्रकार का वैकुण्ठदर्शन भगवान् ने अक्रूरजी को कराया था।
(भा. 10।39। 41 से 55 तक) - ↑ भा. 10।29।1
- ↑ भा. स्क. 4 अध्याय 25 से 29 तक।
- ↑ याताबला ब्रजं सिद्ध मयेमा रंस्यथ क्षपाः।
यदुद्दिश्य व्रतमिदं चेरुरार्याचनं सतीः।।
(भा. 10।22।27) यहाँ ‘ईमाः’ का अर्थ ‘शरद् रात्रियाँ’ है।
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