भागवत स्तुति संग्रह पृ. 133

भागवत स्तुति संग्रह

दूसरा अध्याय

माधुर्यलीला
तृतीय प्रकरण
रास का आह्वान्

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नागपत्नियों द्वारा की हुई स्तुति


इसे सुनकर गोपों को वैकुण्ठलोक देखने की इच्छा हुई। किन्तु गोप तो देहादि से आच्छादित थे और उनको देहादि से निराला ब्रह्मस्वरूप दिखाना था। वह ब्रह्मस्वरूप तो तीनों कालों में रहने वाला, चैतन्यरूप, देशादि परिच्छेद से रहित स्वप्रकाश, नित्यसिद्ध है जिसको एकाग्रचित्त तथा मनन करने वाले ज्ञानी सत्त्वादि तीनों गुणों के निवृत्त होने पर देखते हैं। किन्तु भगवान ने अपने योगबल से गोपों को वैकुण्ठ लोक दिखाया।[1] गोपों ने वहाँ मूर्तिमान वेदों को भगवान की स्तुति करते देखा। इतना ही वर्णन कर अध्याय 28 समाप्त होता है और यह बात रह जाती है कि वैकुण्ठ में और क्या अद्भुत ऐश्वर्य देखा? इसलिए यह कल्पना की जाती है कि भगवान् ने गोपों को वैकुण्ठ लोक में रासलीला दिखायी और यह लीला इस लोक में नहीं हुई। इसका समर्थन ‘ता रात्रीः’[2] शब्दों से किया है। कल्पनाकार का मत है कि इन शब्दो का अभिप्राय उस रात्रि से है जिस रात्रि में गोपों ने ब्रह्मलोक देखा था।

इस पर हमारा वक्तव्य यही है कि यदि ऐसा ही होता तो व्यास भगवान साफ-साफ क्यों न कह देते? अध्याय 28 के अंतिम भाग में यह स्पष्ट लिखा है कि वैकुण्ठ लोक देखने पर श्रीकृष्ण भगवान ने गोपों को समाधि से जगाया, तब वे निद्रा से जगे हुए की भाँति विस्मय में आ गये। इसके उपरान्त रासलीला का प्रकरण आता है। व्यास भगवान जहाँ कोई उपलक्षण कहते हैं, वहाँ उस विषय को स्पष्ट भी कर देते हैं, जैसा कि पुरञ्जन के इतिहास से प्रतिपादन किया है।[3] हमारा मत यही है कि श्रीमद्भागवत में जो स्थल जैसा है उसको वैसा ही प्रकट करना चाहिए। श्रीमद्भागवत के द्रष्टा पूज्यपाद स्वामी श्रीधरजी स्पष्ट कहते हैं कि ‘ता रात्रीः’ शब्द का अर्थ 22 अध्याय के श्लोक 27 वें कहे हुए ‘इमाः’ अर्थात् शरद्-ऋतु की रात्रियाँ थीं।[4]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इसी प्रकार का वैकुण्ठदर्शन भगवान् ने अक्रूरजी को कराया था।
    (भा. 10।39। 41 से 55 तक)
  2. भा. 10।29।1
  3. भा. स्क. 4 अध्याय 25 से 29 तक।
  4. याताबला ब्रजं सिद्ध मयेमा रंस्यथ क्षपाः।
    यदुद्दिश्य व्रतमिदं चेरुरार्याचनं सतीः।।
    (भा. 10।22।27) यहाँ ‘ईमाः’ का अर्थ ‘शरद् रात्रियाँ’ है।

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भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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