भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य प्रेमी कुछ गैर हिन्दू भक्त जन 5

भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य प्रेमी कुछ गैर हिन्दू भक्त जन


गोलोकवासी भक्त श्री रामशरणदासजी ‘पिलखुवा’

(3)
श्रीकृष्ण-भक्त बहन रेहाना तैय्यबजी

श्रीकृष्ण की उपासिका - मैंने पुनः प्रश्न किया, ‘कुछ लोग भगवान श्रीकृष्ण को ऐतिहासिक पुरुष नहीं मानते। उधर कुछ लोग उन्हें ऐतिहासिक पुरुष तो मानते हैं, पर उन्हें वे भगवान का साक्षात अवतार नहीं मानते? इन विषयों पर आपका मत क्या है?’

इस प्रश्न पर रेहाना जी कुछ भड़क उठीं और बोली ‘जो लोग भगवान श्रीकृष्ण के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखते, वे कोरे अज्ञानी हैं। कोई उनके अस्तित्व में विश्वास करे या न करे, परंतु सत्य तो सत्य ही है। भगवान श्रीकृष्ण समय-समय पर आज भी साक्षात प्रकट होकर भक्तों को अपना दर्शन दिया करते हैं। श्रीमीराबाई को उन्होंने प्रत्यक्ष दर्शन दिये थे। सूरदास जी के भी समक्ष प्रकट हो कर उन्हें अपनी संनिधि प्रदान की थी। नरसी भगत की उन्होंने स्वयं प्रकट हो कर सहायता की थी और उनका भात भरा था। धर्म पर विपत्ति आने पर वे अवतार ले कर धर्म द्रोहियों का सदा संहार किया करते हैं। उनके अस्तित्व में विश्वास न करने वाले अज्ञानी हैं।’ यह कहते हुए रेहाना जी श्रीकृष्ण प्रेम में अत्यन्त विह्वल हो उठीं। बहन रेहानाजी बोलीं - ‘भगवत्तत्त्व बड़ा गूढ़ और विलक्षण है। इस जानने योग्य परम तत्त्व श्रीकृष्ण को जिसने जान लिया है, वही उस अनिर्वचनीय रसानुभूति का अनुभव कर सकता है। श्रीकृष्ण प्रेम ऐसा ही अनूठा है। इसकी टीस को जिसने अनुभव किया है, वही उस दिव्यानन्द को जान सकता है -

नहीं इश्क का दर्द लज्जत से खाली
जिसे ‘जौक’ है वह मजा जानता है।

उन्होंने कहा, ‘भगवान श्रीकृष्ण अथवा श्रीकृष्ण को काल्पनिक बताने वाले स्वयं बिन्दु के समान हैं और भगवान श्रीकृष्ण अथवा राम अनन्त सिन्धु हैं। भला बिन्दु सिन्धु का क्या मुकाबला कर सकता है? कहाँ एक बूँद और कहाँ अगाध समुद्र! क्या कभी बिन्दु को सिन्धु की गम्भीरता का पूरा ज्ञान हो सकता है? असम्भव! अतः लोगों की ऐसी उक्तियों का कोई मूल्य नहीं है।’

‘आप मुसलिम-परिवार की हो कर भी भगवान श्रीकृष्ण की उपासना कब से और कैसे करती हैं?’ इस प्रश्न पर स्व. रेहाना बहन ने कहा - ‘यह सच है कि मैंने एक मुसलिम घर में जन्म लिया, पर मेरे संस्कार अस्सी प्रतिशत हिन्दू हैं। यह भी सच है कि असल में हम हिन्दू ही थे, हिन्दुस्तान में ही पैदा हुए, कहीं बाहर से नहीं आये। मैं बचपन से ही पूर्व जन्म मानती थी, श्रीकृष्ण को अपने दिल में बैठाये फिरती थी। बचपन में वेदान्त पढ़ती और उसे समझती थी। घर से अलग रह कर कुछ अजब मानसिक और आध्यात्मिक सूनापन-सा महसूस किया करती थी। जब मेरी उम्र आठ वर्ष की थी तभी मैंने किसी से सुना था कि ‘हिन्दू लोग बुत परस्त हैं।’ इस पर मैंने झुँझला कर कहा था कि हिन्दू मूर्ति पूजक नहीं हैं, वे मात्र मूर्ति नहीं पूजते, बल्कि उसके पीछे जो कुछ तत्त्व है, उसे ही पूजते हैं। वास्तविकता यह है कि श्रीकृष्ण-भक्ति मुझे पिछले जन्म के संस्कारों के कारण ही मिली है, मैं ऐसा ही मानती हूँ। मेरे परिवार वाले मुझे गीता पढ़ते देखकर, श्रीकृष्ण की भक्ति करते देखकर और श्रीकृष्ण-भक्ति के भजन गाते हुए सुन कर अपनी धर्मान्धता के कारण मुझ से काफी नाराज रहते थे। मेरे पूर्व जन्म के संस्कारों ने ही मेरी काफी मदद की। ये संस्कार ही मुझे यह सब करने पर मजबूर करते रहे हैं।


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