भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य प्रेमी कुछ गैर हिन्दू भक्त जन

भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य प्रेमी कुछ गैर हिन्दू भक्त जन


गोलोकवासी भक्त श्री रामशरणदासजी ‘पिलखुवा’

भगवान श्रीकृष्ण, श्रीमद्भागवत तथा श्रीमद्भगवद्गीता के दिव्य प्रेम तत्त्व ने हिन्दुओं को ही नहीं, अनेक अंग्रेजों तथा मुसलमानों को भी प्रभावित कर उन्हें श्रीकृष्ण-प्रेम में आबद्ध कर लिया था। सनातन-धर्म के अनन्य सेवक तथा संत-साहित्य के सुविख्यात लेखक गोलोकवासी भक्त श्रीरामशरणदास जी ने ऐसे ही अनेक विदेशी भगवत्प्रेमी भक्तजनों के पावन चरित्रों का संकलन किया था। उनमें से कुछ को यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है - सं.
(1)
श्रीरोनाल्ड निक्सन बने श्रीकृष्ण प्रेम-भिखारी[1]

ब्रिटेन में जन्मे श्रीरोनाल्ड निक्सन अपने देश की सेना में भर्ती हुए थे। उन्होंने युद्ध में भाग लेते समय अनुभव किया कि मानव-जीवन का लक्ष्य आध्यात्मिक उन्नति में ही निहित है। उसे भौतिकवादी वस्तुओं की उपलब्धि में लगाना कोरी मूर्खता ही है। युद्ध तथा हिंसा से ऊबकर वे भगवान बुद्ध के दर्शन की ओर उन्मुख हुए। बाद में श्रीमद्भगवद्गीता का अध्ययन कर उन्होंने अपना समस्त जीवन श्रीराधा-कृष्ण की भक्ति तथा वैष्णवधर्म के प्रचार-प्रसार के लिये समर्पण कर दिया। सुविख्यात शिक्षाविद डाॅ. ज्ञानेन्द्र नाथ चक्रवर्ती इंग्लैण्ड गये हुए थे। वहीं रोनाल्ड निक्सन की उनसे भेंट हुई। श्रीचक्रवर्ती के परामर्श पर वे अपना देश छोड़ कर भारत आ गये। कुछ दिन लखनऊ में श्रीचक्रवर्ती के साथ रहे। बाद में महामना पं. मदन मोहन मालवीयजी महाराज ने उन्हें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में मनोनीत कर दिया।

श्रीज्ञानेन्द्र नाथ चक्रवर्ती की धर्मपत्नी यशोदा परम भागवत विदुषी महिला थीं। श्रीरोनाल्ड निक्सन ने उनके पावन सांनिध्य में रह कर भगवान श्रीकृष्ण-राधा जी के दिव्याति दिव्य प्रेम की अनुभूति प्राप्त की। यशोदा माई को अपना गुरु बनाया तथा उनसे दीक्षा ली। यशोदा माई ने रोनाल्ड निक्सन को ‘श्रीकृष्ण प्रेम-वैरागी’ नाम दिया।

वे जिन दिनों काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य करते थे (संवत 1985 में) उन दिनों ‘कल्याण’ के ‘भक्तांक’ विशेषांक के लिये सामग्री-संकलन करते समय पूज्य भाई जी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार से उनकी काशी में भेंट हुई। उन्होंने भाईजी को ‘ज्ञान और भक्ति’ शीर्षक से एक सुन्दर लेख विशेषांक के लिये लिख कर दिया। भाई जी ने उस समय यह स्वीकारा था कि श्रीकृष्ण प्रेमजी को श्रीमद्भगवद्गीता का गहन अध्ययन है।

श्रीकृष्ण प्रेम जी ने गीता का अंग्रेजी में अनुवाद किया। श्रीमद्भागवत में वर्णित भगवान की बाल-लीलाओं का अलग से अनुवाद किया। वे सिर पर लम्बी चोटी रखते थे और माथे पर वैष्णव तिलक लगाते थे। गले में सोने की एक डिबिया में गीता जी की छोटी-सी प्रति श्रद्धा-भाव से धारण किये रहते थे।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीकृष्णप्रेमजी जाने-माने अंग्रेज श्रीकृष्ण-भक्त थे। वे रोनाल्ड निक्सन से ‘श्रीकृष्णप्रेम’ बने। अपना देश तथा वेश-भूषा त्यागकर परम वैष्णव बन अल्मोड़ा के निकट ‘उत्तर वृन्दावन’ बसाकर जीवन पर्यन्त श्रीकृष्ण के प्रेम में निमग्न रहे। उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता आदि का अंग्रेजी में अनुवाद किया
  2. भगवत्प्रेम अंक |लेखक: राधेश्याम खेमका |प्रकाशक: गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 474 |

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