गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 76

गीता माता -महात्मा गांधी

Prev.png
अनासक्तियोग
दूसरा अध्याय
सांख्‍ययोग


दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनंजय।
बुद्धौ शरणमन्विच्‍छ कृपणा: फलहेतव:।।49।।

हे धनंजय! समत्‍वबुद्धि की तुलना में केवल कर्म बहुत तुच्‍छ है। तू समत्‍वबुद्धि का आश्रय ले। फल को हेतु बनाने वाले मनुष्‍य दया के पात्र हैं।

बुद्धियुक्‍तो जहातीह उभे सुकृतदुष्‍कृते।
तस्‍माद्योगाय युज्‍यस्‍व योग: कर्मसु कौशलम्।।50।।

बुद्धियुक्‍त अर्थात समता वाले पुरुष को यहाँ पाप-पुण्‍य का स्‍पर्श नहीं होता, इसलिए तू समत्‍व के लिए प्रयत्‍न कर। समता ही कार्यकुशलता है।

कर्मजं बुद्धियुक्‍ता हि फलं तयक्‍त्‍वा मनीषिण:।
जन्‍मबन्‍धविनिर्मुक्‍ता: पदं गच्‍छन्‍त्‍यनामयम्।।51।।

क्‍योंकि समत्‍व बुद्धि वाले लोग कर्म से उत्‍पन्‍न होने वाले फल का त्‍याग करके जन्‍म-बंधन से मुक्‍त हो जाते हैं और निष्‍कंलक गति-मोक्षपद-पाते हैं।

यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्‍यति।
तदा गन्‍तासि निर्वेदं श्रोतव्‍यस्‍य श्रुतस्य च।।52।।

जब तेरी बुद्धि मोह रूपी कीचड़ से पार उतर जायगी तब तुझे सुने हुए के विषय में और सुनने को जो बाकी होगा उसके विषय में उदासीनता प्राप्‍त होगी।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः