गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 260

गीता माता -महात्मा गांधी

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8 : नित्य व्यवहार में गीता


तुलसीदास और गीता तो मुझे सिखलाते हैं कि जब तुम्हारे ऊपर या तुम्हारे धर्म पर हमला हो तो तुम आत्मशुद्धि कर लेना और जो पिंड में है, वह ब्रह्मांड में। आत्मशुद्धि- तपश्चर्या करने का मेरा प्रयत्न चौबीसों घंटों चल रहा है। पार्वती के नसीब में अशुभ लक्षणों वाला पति था। ऐसे लक्षण होने पर भी शुभंकर तो शिव जी ही थे। पार्वती ने उन्हें तपोवल से पाया। संकट के समय में ऐसा ही तय हिंदू धर्म सिखलाता है। इस धर्म ज्ञान का साक्षी हिमालय है , वही हिमालय जिसके ऊपर हिंदू धर्म की रक्षा के लिए लाखों ऋषि-मुनियों ने अपने शरीर गला डाले हैं। वेद कुछ काग़ज पर लिखे अक्षर नहीं हैं। वेद तो अंतर्यामी हैं और अंतर्यामी ने मुझे बतलाया है कि यम-नियमादि का पालन कर और कृष्ण का नाम लें। मै विनय के साथ, परन्तु सत्यता से कहता हूँ कि हिंदू धर्म की सेवा, हिंदू धर्म की रक्षा के सिवा मेरी दूसरी प्रवृति नहीं। हां, उसे करने की मेरी रीति भले ही निराली हो।

प्रश्न -

आज जो पैसा आपको मिलता है, उसे देने वाले अधिकांश में विलायती कपड़ों के ही व्यापारी है और आपको वे जो पैसा देते है, वह आपके प्रेम के कारण देते हैं, खादी के प्रेम के कारण नहीं। क्या आप यह जानते है?

उत्तर -

प्रेम सें मुझे एक पैसा भी नहीं चाहिए! मै चाहता हूँ कि मेरे काम को समझकर लोग मुझे पैसा दें! प्रेम से आप मुझे दूसरी वस्तु दे सकते हैं, पर पैसा नहीं चाहिए। सच्ची बात तो यह है कि व्यापारी लोग मुझे पैसा देते हैं तो यह समझकर कि मेरा व्यापार जमे तो उससे उनकी या देश की हानि नहीं है। वे जानते हैं कि अंत में उन्हें खादी का ही व्यापार करना पड़ेगा। वे इसे खूब समझते है; परंतु आज निश्‍चय-बल नहीं है। यह बल उन्हें मिले, इसके लिए वे मुझे ईश्वर से प्रार्थना करने को कहते हैं। इस बीच में वे धन देकर इस प्रवृति का पोषण करते हैं। मुझे फुसलाने को धन नहीं देते।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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