गीता माता -महात्मा गांधी
गीता-प्रवेशिका
तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्।
तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तम:।
नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्यया।
भक्तया त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन। परंतु हे अर्जुन! हे परंतप! मेरे संबंध में ऐसा ज्ञान, ऐसे मेरे दर्शन और मुझमें वास्तविक प्रवेश केवल अनन्य भक्ति से ही संभव है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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