गीता माता -महात्मा गांधी
गीता-प्रवेशिका
मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्त: संगवर्जित:।
यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च य:।
समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम्। समस्त नाशवान प्राणियों में अविनाशी परमेश्वर को सम भाव से मौजूद जो जानता है वही उसका जानने वाला है। यत: प्रवृत्ति र्भूतानां येन सर्वमिदं ततम्। जिसके द्वारा प्राणियों की प्रवृत्ति होती है और जिसके द्वारा यह सारे का सारा व्याप्त है उसे जो पुरुष स्वकर्म द्वारा भजता है वह मोक्ष पाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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