गीता माता -महात्मा गांधी
गीता-बोध
छठा अध्याय
अर्जुन को यह योग कठिन लगा। वह बोला, ʻʻयह आत्म- स्थिरता कैसे प्राप्त हो? मन तो बंदर के समान है। मन का रोकना हवा रोकने के समान है। ऐसा मन कब और कैसे वश में आता है?ʼʼ भगवान ने उत्तर दिया, ʻʻतेरा कहना सच है। पर राग-द्वेष को जीतने और प्रयत्न करने से कठिन को आसान किया जा सकता है। ʻनिस्संदेहʼ मन को जीते बिना योग का साधन नहीं बन सकता।ʼʼ तब फिर अर्जुन पूछता है, ʻʻमान लीजिये कि मनुष्य में श्रद्धा है, पर उसका प्रयत्न मंद होने से यह सफल नहीं होता। ऐसे मनुष्य की क्या गति होती है? वह बिखरे बादल की तरह नष्ट तो नहीं हो जाता है?ʼʼ भगवान बोले, ʻʻऐसे श्रद्धालु का नाश तो होता ही नहीं। कल्याण-मार्गी की अवगति नहीं होती। ऐसा मनुष्य मरने पर कर्मानुसार पुण्यलोक में बसने के बाद पृथ्वी पर लौट आता है और पवित्र घर में जन्म लेता है। ऐसा जन्म लोकों में दुर्लभ है। ऐसे घर में उसके पूर्व-संस्कार उदय होते हैं। अब प्रयत्न में तेजी आती है और अंत में उसे सिद्धि मिलती है। यों प्रयत्न करते- करते कोई जल्दी और कोई अनेक जन्मों के बाद अपनी श्रद्धा और प्रयत्न के बल के अनुसार समत्व को पाता है। तप, ज्ञान, कर्मकांड संबंधी कर्म - इन सबसे समत्व विशेष है, क्योंकि तपादि का अंतिम परिणाम भी समता ही होना चाहिए। इसलिए तू समत्व लाभ कर और योगी हो। अपना सर्वस्व मुझे अर्पण कर और श्रद्धापूर्वक मेरी ही अराधना करने वालों को श्रेष्ठ समझ।ʼʼ इस अध्याय में प्राणायाम-आसन आदि की स्तुति है। पर स्मरण रक्खें कि भगवान ने उसी के साथ ब्रह्मचर्य का अर्थात ब्रह्म-प्राप्ति के यम-नियमादि पालन की आवश्यकता बतलाई है। यह समझ लेना आवश्यक है कि अकेली आसनादि किया से कभी समत्व नहीं प्राप्त हो सकता। यदि उस हेतु से वे क्रियाएं हों तो आसन-प्राणायामादि मन को स्थिर करने में, एकाग्र करने में, थोड़ी-सी मदद करते हैं, अन्यथा उन्हें अन्य शारीरिक व्यायामों की श्रेणी में समझकर उतनी ही - शरीर-सुधार भर ही - कीमत माननी चाहिए। शारीरिक व्यायाम रूप में सात्त्विक है। शारीरिक दृष्टि से इसका साधन उचित है, पर उससे सिद्धियां पाने और चमत्कार देखने को ये क्रियाएं करने में मैंने लाभ के बजाय हानि होते देखी है। यह अध्याय तीसरे, चौथे और पांचवें अध्याय का उपसंहार- रूप समझना चाहिए। यह प्रयत्नशील को आश्वासन देता है। हमें समता प्राप्त करने का प्रयत्न हारकर कभी नहीं छोड़ना चाहिए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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