गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
ग्यारहवां अध्याय
विश्वरूपदर्शनयोग
कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन् हे महात्मन्! ये आपको क्यों नमस्कार न करें? आप ब्रह्मा से भी बड़े आदिकर्ता हैं। हे अनंत, हे देवेश, हे जगन्निवास! आप अक्षर हैं, असत हैं और इससे जो परे है वह भी आप ही हैं। त्वमादिदेव: पुरुष: पुराण- आप आदि देव हैं। आप पुराण-पुरुष हैं। आप इस विश्व के परम आश्रय स्थान हैं। आप जानने वाले हैं और जानने योग्य हैं। आप परमधाम हैं। हे अनंतरूप! इस जगत में आप व्याप्त हो रहे हैं। वायुर्षमोऽग्निर्वरुण: शशाक: वायु, यम, अग्नि, वरुण,चंद्र, प्रजापति, प्रपितामह आप ही हैं। आपको हजारों बार नमस्कार पहुँचे और फिर-फिर आपको नमस्कार पहुँचे। नम: पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते हे सर्व! आपको आगे, पीछे, सब ओर से नमस्कार है। आपका वीर्य अनंत है, आपकी शक्ति अपार है, सब आप ही धारण करते हैं, इसलिए आप सर्व हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज