योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 71

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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नवाँ अध्याय
मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण


जिन दिनों तक मथुरा की गद्दी पर विराजमान था उस समय मगध देश का राज्य महाराजा जरासंध के अधीन था, जिसने सारे राजाओं को जीतकर महाराज की उपाधि ली थी। कंस ने अपना बल बढ़ाने के लिए जरासंध से संबंध स्थापित किया और उसकी दो लड़कियों से विवाह कर लिया था।

कृष्ण द्वारा कंस-वध का समाचार जब जरासंध को मिला तो वह क्रोधांध हो गया और यादवों का नाश करने के लिए लड़ाई की आज्ञा दे दी और अगणित सेना लेकर मथुरा पहुँचा। जरांसध की चढ़ाई की खबर सुनकर मथुरा वालों ने श्रीकृष्णबलराम को याद किया क्योंकि इस चढ़ाई के मूल कारण श्रीकृष्ण ही थे। अतएव इस युद्ध के समय उन्हें अपने वंश की सहायता करना आवश्यक प्रतीत हुआ। इसलिए वह और बलराम जरांसध से पहले मथुरा आ पहुँचे और बड़ी शूरता से अपनी जन्मभूमि और उसके राजा उग्रसेन की रक्षा में तत्पर हुए। यद्यपि जरासंध की सेना के सामने यादवों की गिनती बहुत कम थी और उस महान सामर्थ्य वाले राजा के सम्मुख इनके राज्य की कुछ तुलना भी नहीं थी, पर वे अपने नगर और राजा के लिए जी जान से ऐसे लड़े कि उन्होंने जरासंध की सेना के दाँत खट्टे कर दिए। जरासंध इतना निराश हुआ कि उसने मथुरा का घेरा उठा लिया और चलता बना।

इसी प्रकार अठारह बार उसने आक्रमण किया पर हर बार निष्फल रहा। अन्तिम बार वह बड़ी तैयारी से आया और अपने साथ अपने अधीन राजाओं को भी लेता आया।

इस चढ़ाई की खबर पाकर यादवों को बड़ी चिन्ता हुई, पर कृष्ण की सलाह से यह निश्चय किया गया कि इस अगणित सेना से लड़ना मानो अपने आपका बलिदान देना है। बारह बार जरासंध ने म्लेच्छों की सहायता ली है। अब उससे मुकाबला करना मानो अपना बल तोड़ना है। इस बात को विचारकर सबने यही निश्चय किया कि मथुरा छोड़कर किसी और स्थान की शरण लेनी चाहिए। इन्हीं बातों को विचार तथा अपनी धन-सम्पत्ति को ले उन्होंने मथुरा को छोड़ दिया और पश्चिम में समुद्र के किनारे गुजरात प्रदेश में द्वारिका नामक एक स्थान को अपने वास के लिए चुना। यह शहर पहाड़ की घाटी में बसा हुआ था।

यहाँ कृष्ण ने एक टापू में द्वारिकापुरी की नींव डाली। यह पुरी अब तक स्थित है और हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ है। यहाँ यादवों ने एक मजबूत दुर्ग बनाया और अपने पहरे चौकी का पूरा प्रबन्ध करके[1] रहने लगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जब युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से राजसूय यज्ञ करने का विचार प्रकट किया और आज्ञा माँगी, तो कृष्ण ने कहा कि हे राजन! जरासंध ने यहाँ के सारे राजा-महाराजाओं को जीतकर अपने अधिकार में कर लिया है। बहुतेरी जातियाँ उसके भय से देश छोड़कर भाग गई हैं। उसकी सेना में अगणित वीर योद्धागण इकट्ठे हो गए हैं। जब तक तुम उसे नहीं जीत लेते राजसूय यज्ञ नहीं कर सकते। इसी प्रसंग में उन सब युद्धों का वर्णन किया जो उन्होंने और उनके वंश वालों ने जरासंध से किये थे और जिनसे व्याकुल होकर अन्त में उन्हें द्वारिका की ओर भागना पड़ा था। इस बातचीत से विदित होता है कि उस समय अकेले यादव वंश में 18 हजार भाई-भतीजे मौजूद थे जो सबके सब शस्त्रधारी और लड़ने-भिड़ने में निपुण थे। इसी बातचीत में श्रीकृष्ण ने कहा कि द्वारिकापुरी के इर्द गिर्द पहाड़ों का घेरा है जो तीन योजन है। हर एक योजन में 21 छावनियाँ और 100 द्वार बनाए गए थे, जहाँ पर शस्त्रधारी यादव सेना रक्षा के लिए नियत थी। एक योजन चार कोस का होता है।

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योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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