योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
पहला अध्याय
कृष्ण की जन्मभूमि
ऐसा कहते है कि महाराज रामचन्द्र के समय में उस स्थान पर एक घना बन था जो एक जंगली राजा मधु के सत्त्व में था और जिसके नाम पर इस प्रान्त को मधुवन कहते थे। राज मधु के मरने के उपरान्त उसका पुत्र लवण महाराजा रामचन्द्र से लड़ने के लिए तत्पर हुआ जिस पर शत्रुघ्न को उसे लड़ने को भेजा गया। लड़ाई में लवण मारा गया और महाराज शत्रुघ्न की जय हुई जिसके स्मारक रूप में उन्होंने इस स्थान पर मथुरा नगरी बसाई। इसका मथुरा नाम क्यों पड़ा, यह प्रश्न ऐसा है जिसका उत्तर देना कठिन है। संभव है कि मधुपुरी से बिगड़कर मथुरा बन गया हो अथवा संस्कृत शब्द ‘मथ’ से यह कुछ संबंध रखता हो। ‘मथ’ शब्द के अर्थ मथने अर्थात मक्खन निकालने के हैं। संभव है कि दूध, दही और मक्खन की बहुतायत से इसका नाम मथुरा पड़ गया हो। जिन्दावस्था[1] में मथुरा शब्द गोचर के लिए प्रयोग हुआ है फिर गोकुल[2], ब्रज और वृन्दावन ये सब नाम भी यही प्रकट करते हैं कि प्राचीन समय में इस प्रान्त में बड़े-बड़े वन थे जो अपने गोचरों तथा पशुओं के लिए प्रसिद्ध थे और जहाँ दूध, दही तथा मक्खनादि बहुतायत से मिलता था। ऐतिहासिक समय में सर्वप्रथम मथुरा का वर्णन महात्मा बुद्ध के जीवनचरित्र में आया है जिससे प्रकट होता है कि उस समय भी यह शहर भारतवर्ष के दक्षिण प्रांत के प्रसिद्ध शहरों में था। यह नहीं कहा जा सकता कि उस समय भी इसे कोई धार्मिक श्रेष्ठता प्राप्त थी या नहीं, पर प्रायः बुद्धदेव के वहाँ व्याख्यान देने से विदित होता है कि यह शहर उस समय भी एक बड़ा केन्द्र होगा, क्योंकि महात्मा बुद्ध विशेषतः ऐसे ही बड़े-बड़े स्थानों में व्याख्यान दिया करते थे जहाँ लोगों की अधिक भीड़-भाड़ होती थी। मथुरा कई शताब्दियों तक बौद्ध-शिक्षा का केन्द्र स्थल बना रहा। इसके उपरान्त मथुरा का वर्णन यूनानियों के संदर्भ में हुआ है और इसमें कुछ संदेह नहीं कि यूनानियों ने इस पर विजय प्राप्त की और कुछ काल तक मथुरा बैक्ट्रिया वंश के अधीन रही। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पारसी धर्मग्रन्थ जेन्दावस्ता
- ↑ श्रीमद्भागवत में गोकुल व गाय का निकास ‘गो’ शब्द अर्थात गाय से बताया है। मा. अ. श्लोक 25।
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