गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
सत्रहवां अध्याय
श्रद्धात्रयविभागयोग
अर्जुन उवाच- अर्जुन बोले- हे कृष्ण! शास्त्र विधि अर्थात शिष्टाचार की परवा न कर जो केवल श्रद्धा से ही पूजादि करते हैं उनकी गति कैसी होती है?– सात्त्विक, राजसी व तामसी? श्रीभगवानुवाच श्रीभगवान् बोले- मनुष्य में स्वभाव से ही तीन प्रकार की श्रद्धा अर्थात सात्त्विक, राजसी व तामसी होती है, वह तू सुन। सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत । हे भारत! सबकी श्रद्धा अपने स्वभाव का अनुसरण करती है। मनुष्य में कुछ- न- कुछ श्रद्धा तो होती है। जैसी जिसकी श्रद्धा, वैसा वह होता है। यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसा: । सात्त्विक लोग देवताओं को भजते हैं, राजस लोग यक्षों और राक्षसों को भजते हैं और दूसरे तामस लोग भूत-प्रेतादि को भजते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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