विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
चौथा अध्याय
द्वारकालीला
एकादश प्रकरण
भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना
द्वारकावासी तथा इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा की हुई स्तुति
महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था। भगवान कुन्ती की विज्ञप्ति पर कुछ काल और हस्तिनापुर में टिक गये और पाण्डवों को आनन्द देते रहे, वहाँ की स्त्रियाँ जिस मार्ग से भगवान जाते थे वहाँ के देवमन्दिरों और राजमहलों के शिखरों और मकानों की छत पर बैठकर फूलों की वृष्टि करती थीं और आपस में स्तुतिपूर्वक भगवान की ही वार्ता करती थीं जो इस प्रकरण के अंत में लिखी है। तदनन्तर भगवान पाण्डवों से विदा होकर हस्तिनापुर से चल दिये। यह दृश्य बड़ा हृदयवेधी था। पाण्डव बहुत दूर तक भगवान को पहुँचाने के लिए गये। युधिष्ठिर ने अपनी चतुरंगिणी सेना भगवान की रक्षा के निमित्त भेज दी। तदनन्तर भगवान ने अपने से अतिस्नेह करने वाले विरहदुःख से दुःखित और अपने साथ बहुत दूर तक आये हुए पाण्डवों को विदा करके यादवों के साथ द्वारका नगरी की ओर प्रयाण किया। मार्ग में कुरु, जांगल, पाञ्चाल, शूरसेन, यमुना तट के देश, ब्रह्मावर्त, मत्स्य, सरस्वती के निकट के देश, निर्जल मरुदेश (मारवाड़) और थोड़े जलवाले धन्वनामक देशों को लाँघकर सौभीर और आभीर के उपरान्त अपने आनर्तदेश (द्वारका) में पहुँचे। भगवान का दर्शन करके द्वारकावासियों के आनन्द की सीमा नहीं रही। उन्होंने भगवान की स्तुति की, वह स्तुति इस प्रकरण के आदि में लिखी गयी है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज