विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
पहला अध्याय
बाललीला
द्वितीय प्रकरण
श्रीकृष्णजन्म
देवकी कृत स्तुति
(अब काल की स्वतंत्रता का खण्डन करते हैं-) हे प्रधान (माया) के प्रवर्तक! यह काल जिसकी निमेषादि सूक्ष्मावस्था है और संवत्सरादि स्थूलावस्था है, जिसको द्विपरार्धलक्षण महाकाल कहते हैं, जिससे यह विश्व विपरिणाम को प्राप्त होता है वह आपका शक्ति विशेष- अथवा लीला है ऐसे ईशान (प्रकृति- कालादि के नियन्ता) अभय देने वाले आपकी मैं शरणागत होती हूँ।।26।। (अब यह वर्णन किया जाता है कि भगवान ही निर्भय स्थान हैं।) यह जन्म-मरणशील जन मृत्युरूपी सर्प से भयभीत होकर संपूर्ण लोकों में भागता फिरा किन्तु (सब लोकों में मृत्यु होने के कारण) निर्भय स्थान इसे कहीं नहीं मिला, अब हे आदिपुरुष! किसी पुण्यविशेष के कारण आपके चरणकमलों के समीप पहुँचकर निर्भय शयन करता है क्योंकि मृत्यु आपके चरण कमलों से दूर भागती है।।27।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
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