भागवत स्तुति संग्रह पृ. 30

भागवत स्तुति संग्रह

पहला अध्याय

बाललीला
द्वितीय प्रकरण
श्रीकृष्णजन्म

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वसुदेव कृत स्तुति

 
त्वत्तोऽस्य जन्मस्थितिसंयमान्विभो वदन्त्यनीहाद्गुणादविक्रियात्।
त्वयीश्वरे ब्रह्मणि नो विरुध्यते त्वदाश्रयत्वादुपचर्यते गुणैः।।19।।

हे व्यापक! यद्यपि आप निष्काम, निर्गुण और निर्विकार हैं तो भी वेदादि कहते हैं कि इस जगत् के जन्म, स्थिति और नाश आपही से होते हैं। (यहाँ शंका होती है कि भगवान व्यापार शून्य हैं अतः उनका कर्तृत्व किस प्रकार बन सकता है? यदि कर्तृत्व हुआ तो निर्विकारत्व किस प्रकार हो सकेगा? इसका समाधान करते हैं-) निर्गुण होने से आप में निर्विकारित्व है और माया शबल होने से कर्तृत्व है इस कारण विरोध नहीं है। (यथा- अयस्कान्तमणि (चुम्बक) में विकार के बिना कर्तृत्व होता है।) आपमें कर्तृत्व कहने का अभिप्राय इतना ही है कि आप गुणों के आश्रय हैं। (जिस प्रकार सेवक द्वारा किये गये कार्यों का कर्तृत्व राजा में माना जाता है उसी प्रकार गुणों से किए गये सृष्ट्यादि कार्यों का कर्तृत्व आप में माना जाता है) तथापि वास्तव में आप अकर्ता और निर्विकार हैं।।19।।

 
सत्त्वं त्रिलोकस्थितये स्वमायया बिभर्षि शुक्लं खलु वर्णमात्मनः।
सर्गाय रक्तं रजसोबृंहितं कृष्णं च वर्ण तमसा जनात्यये।।20।।

वही आप परमेश्वर अपनी माया के द्वारा त्रिलोकी की रक्षा करने के लिए अपना शुभ्र वर्ण, (सत्त्वगुणात्मक विष्णुमूर्ति) उत्पत्ति के लिए रक्तवर्ण (रजोगुणात्मक ब्रह्मरूप) और संपूर्ण सृष्टि का प्रलय करने के लिए कृष्णवर्ण (तमोगुणात्मक रुद्रमूर्ति) धारण करते हैं (इससे यह स्पष्ट हो गया कि ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र ये तीन पृथक देवता नहीं है किन्तु परमेश्वर के ही कार्य के अनुसार पृथक्-पृथक् रूप हैं।)।।20।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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