विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
पहला अध्याय
बाललीला
द्वितीय प्रकरण
श्रीकृष्णजन्म
वसुदेव कृत स्तुति
हे व्यापक! यद्यपि आप निष्काम, निर्गुण और निर्विकार हैं तो भी वेदादि कहते हैं कि इस जगत् के जन्म, स्थिति और नाश आपही से होते हैं। (यहाँ शंका होती है कि भगवान व्यापार शून्य हैं अतः उनका कर्तृत्व किस प्रकार बन सकता है? यदि कर्तृत्व हुआ तो निर्विकारत्व किस प्रकार हो सकेगा? इसका समाधान करते हैं-) निर्गुण होने से आप में निर्विकारित्व है और माया शबल होने से कर्तृत्व है इस कारण विरोध नहीं है। (यथा- अयस्कान्तमणि (चुम्बक) में विकार के बिना कर्तृत्व होता है।) आपमें कर्तृत्व कहने का अभिप्राय इतना ही है कि आप गुणों के आश्रय हैं। (जिस प्रकार सेवक द्वारा किये गये कार्यों का कर्तृत्व राजा में माना जाता है उसी प्रकार गुणों से किए गये सृष्ट्यादि कार्यों का कर्तृत्व आप में माना जाता है) तथापि वास्तव में आप अकर्ता और निर्विकार हैं।।19।। वही आप परमेश्वर अपनी माया के द्वारा त्रिलोकी की रक्षा करने के लिए अपना शुभ्र वर्ण, (सत्त्वगुणात्मक विष्णुमूर्ति) उत्पत्ति के लिए रक्तवर्ण (रजोगुणात्मक ब्रह्मरूप) और संपूर्ण सृष्टि का प्रलय करने के लिए कृष्णवर्ण (तमोगुणात्मक रुद्रमूर्ति) धारण करते हैं (इससे यह स्पष्ट हो गया कि ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र ये तीन पृथक देवता नहीं है किन्तु परमेश्वर के ही कार्य के अनुसार पृथक्-पृथक् रूप हैं।)।।20।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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