भागवत स्तुति संग्रह पृ. 222

भागवत स्तुति संग्रह

दूसरा अध्याय

माधुर्यलीला
अष्टम प्रकरण
परिशिष्ट
माधुर्य-भक्ति

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उद्धव जी कृत गोपी स्तुति

यदि मन का निरोध कर लिया जाय तो तीनो अवस्थाओं का लय होकर आत्मज्ञान हो जायेगा। अतः तुम्हें मेरा ज्ञानमय स्वरूप प्राप्त करना चाहिए और मेरा जो सौंदर्य, माधुर्यादि स्वरूप सगुण विग्रह है उसको स्वप्नवत् मृषा समझकर उसकी उपेक्षा करनी चाहिए। पुरुष जब स्वप्न से जागता है और उसका मन सावधान हो जाता है तब समझता है कि मैंने अपने ही मन की कल्पना से स्वप्न के पदार्थ देखे हैं और वे सब मिथ्या हैं, यही न्याय जाग्रत के पदार्थों में भी उपयुक्त है। यदि मन पदार्थों से हटा लिया जाय तो जाग्रत के पदार्थ भी मिथ्या प्रतीत होंगे।

‘इस कारण आलस्य को छोड़कर मन का निरोध करना चाहिए। यही सिद्धांत वेद, योग और सांख्यशास्त्रों का है। यही ध्येय, त्याग तप, दया, सत्य आदि अनुष्ठान करने का है, अब मैं सुदूर मथुरा में रहूँगा तो तुम मेरा अधिक चिन्तन करोगी। यह नियम है कि प्रेमियों का ध्यान जैसे निश्चल भाव से परदेश में रहने वाले पति में लगा रहता है, वैसा समीपस्थ पति में नहीं रहता। अतः तुम सकल व्यापारों से छूटे हुए अपने मन को पूर्ण रीति से मेरे ऊपर स्थिर करो, मेरा ही चिन्तन करो, इससे तुम शीघ्र ही मेरे स्वरूप को प्राप्त करोगी।’

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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