विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
दूसरा अध्याय
माधुर्यलीला
अष्टम प्रकरण
परिशिष्ट
माधुर्य-भक्ति
उद्धव जी कृत गोपी स्तुति
इस व्याख्यान का गोपियों पर कोई प्रभाव न हुआ। ऐसा मालूम हुआ मानो उन्होंने कुछ सुना ही नहीं। तब उद्धव जी ने भगवान अंतिम संदेश कहा। वे बोले ‘भगवान् ने कहा है कि मेरा यह कथन कि तुम मुझको ही प्राप्त होगी, केवल मधुर सा प्रतीत होने वाला रोचक वाक्य मत समझना; क्योंकि हे कल्याणियो। क्या तुमने नहीं देखा कि वृन्दावन में रात्रि में क्रीड़ा करते समय जो गोपियाँ मेरे साथ रासक्रीड़ा में सम्मिलित नहीं हो सकीं और पतियों के रोकने के कारण गोकुल में ही रह गयीं वे मेरी लीलाओं का चिन्तन करने के कारण मेरे स्वरूप को ही प्राप्त हो गयी थीं।’ रास क्रीड़ाओं का स्मरण आते ही गोपियों में पूर्वप्रेम जाग उठा और वे मूर्छा से जागे हुए के समान संभलकर उद्धव जी से बोलीं ‘क्या श्रीकृष्णचंद्र अपने संबंधियों के साथ अच्छी तरह से हैं? क्या वे अब मथुरा के साथियों के सामने हम ग्वालिनियों को याद करते हैं? क्या गोकुल में रहते समय चंद्रमा का उदय होने पर खिलने वाले कमलकुन्द के पुष्प और हमारे साथ की हुई रासक्रीड़ा का उन्हें स्मरण आता है?’ कोई सखी पूछने लगी ‘जैसे इन्द्र मेघों द्वारा वर्षा करके सूखे हुए वन को सजीव कर देता है, वैसे ही क्या श्रीकृष्ण अपने मुख, हास्य आदि अंगों के दर्शन, स्पर्श आदि के विरहाग्नि से तपी हुई हमको सजीव करते हुए गोकुल आयेंगे?’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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