भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
वेणुगीत
वृषभानुनंदिनी के, व्रजांगनाओं के कानों में जो कमल फूल हैं, रात्रिविकासी स्थलोद्भव कमल विशेष कुवलय होता है, वह श्रीकृष्ण अर्थात उनके श्रोत्र भूषण भगवान श्रीकृष्ण। वह अपनी आँखों में जो अंजन लगाती हैं वह क्या प्राकृत अंजन नहीं! वह श्यामसुंदर व्रजेन्द्रनंदन ही अंजन होकर उनके नयनों में विराजमान हैं, काष्ठपाषाणमय भूषण उनके नहीं।
ऐसे पुरुषभूषण से जो सुभ्रू अपने हृदय को नहीं भूषित करती उनके कुल, शील, यौवन और गुणरूप संपत्ति को धिक्कार है। श्यामसुन्दर पुरुषभूषण, पूर्णतम पुरुषोत्तम श्रीकृष्णचन्द्र से जिन्होंने अपने को भूषित नहीं किया वह अपने को कंकड-पत्थरों से भूषित करें। श्रीकृष्णचन्द्र के पादपंकजपराग को ही अंजन रूप से लगाती हैं, उनके हृदय में महेंद्र नीलमणि की माला भी श्रीकृष्णचन्द्र परमानंद ही हैं, संसार की अन्य युवती भले ही कंकड़-पत्थरों से अपने को भूषित करें, पर वृन्दावन तरुणियों का मंडन तो एक श्रीकृष्णचन्द्र परमानंदकंद ही हैं। वैसे श्रीकृष्ण परमानंदकंद मनमोहन श्यामसुन्दर भगवान उनके हृदय में हैं ही पर बाहर भी वही, हृदय के बाहर-भीतर एक ही हो। श्रीव्रजांगनाओं के, श्रीवृषभानुनंदिनी के अंतरात्मा, अन्तःकरण, प्राण, इन्द्रियाँ, रोम-रोम सब में, उपरिष्टात् अधस्तात् सर्वतः श्रीकृष्ण ही श्रीकृष्ण। श्रीवृषभानुनंदिनी के श्रीअंग पर जो नील साड़ी, नील उद्भुत दिव्य निचोल, इन्द्रलील चूड़ी, हृदय विलिंपित मृगतद कस्तूरिका सब भगवान ही भगवान। सबका वर्णन कहाँ तक किया जाय, अतः संक्षेप में बताया कि ‘मंडनमखिलं हरिर्जयति’, ‘ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम’ ऐसे प्रभु के सिद्वांत ही हैं। पूर्णतम पुरुषोत्तम श्यामसुन्दर को भी वृषभानुनंदिनी के अतिरिक्त भूषण ही नहीं जिन्हें भगवान अपने भूषण बनावें। श्रीव्रजांगनाओं के, श्रीवृषभानुनंदिनी के भूषण भगवान श्रीकृष्णचन्द्र परमानंदकंद तो श्रीभगवान श्रीकृष्णचन्द्र परमानंदकंद के भी सब आभूषण श्रीवृषभानुनंदिनी ही श्रीव्रजांगना ही हैं, श्रीप्रभु का अन्तरंग स्वरूप श्रीवृषभानुनंदिनी, श्रीवृषभानुनंदिनी के अन्तरंग स्वरूप श्रीभगवान। तभी कहा, ‘उभयोभयभावात्मा’ जैसे भक्त मनोभावनामय भगवान वैसे भगवन्मनोभावनामय भक्त। भक्त के हृदय भगवान, भगवान के हृदय भक्त, इसी दृष्टि से पीतांबर से आवृत हैं। जैसे अद्भुत अनन्त परमानंद सुधा-सिंधु में मधुरिमा होती है, उसी रीति से श्रीकृष्णचन्द्र परमानंदकंद निखिलरसामृतसिंधु में माधुर्यधिष्ठात्री श्रीवृषभानुनंदिनी और उसकी अंशभूता श्रीव्रजांगना। श्रीकृष्ण परमानंदकंद एव तरुणतमाल हैं, श्रीवृषभानुनंदिनी सुवर्णलता हैं, जैसे सुवर्णवर्णा लता से परिवेष्टित तरुणमाल सुशोभित हो वैसे श्रीवृषभानुनंदिनी से श्रीकृष्णचन्द्र परमानंदकंद एवं दोनों का अद्भुत अविघटित सुस्थिर सम्बन्ध है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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