भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
वेणुगीत
प्राकृतजनों को कोई बात समझानी हो, तो लौकिक दृष्टान्त रखना पड़ता है। इसीलिये श्रीरघुनाथ जी के प्रति अपने प्रेम को दिखलाने के लिये श्रीस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है- “कामिहिं नारि पियारि जिमि, लोभिहिं प्रिय जिमि दाम। लाम्पट्य अत्यन्त निन्द्य है, परन्तु मनोमिलिन्द यदि भगवच्चरणाम्बुजमकरन्दमधु का लम्पट हो तो यह कितने सौभाग्य की बात हो? साधारण दृष्टि से राग, आसक्ति एवं व्यसन अत्यन्त निन्द्य हैं, किन्तु सर्वात्म, सर्वाधिष्ठान, अचिन्त्यानन्त आनन्द सुधाजलनिधि श्रीकृष्ण में प्रेम निरोधादि का होता उनके बिना क्षणभर भी रह न सकना-कितना दुर्लभ है? आज तो संसार की यह स्थिति है कि विषयचिन्तन, स्त्री-पुत्र-धनादि के चिन्तन के बिना रहना कठिन हो रहा है, किन्तु इस चिन्तन को वहाँ से हटाकर यदि भगवच्चरण पंकज का चिन्तन न किया तो “पुनरपि जननं पुनरपि मरणम्” के चक्र से निकलना कठिन होगा। श्रीगोपांगनाओं के आसक्ति निरोध को दिखलाने के लिये श्रीशुकदेवजी ने कहा कि भगवान श्रीकृष्णचन्द्र गौ, गोवत्स, गोपाल, बलराम आदि के साथ श्रीवृन्दारण्यधाम में पधारे-“इर्त्थ शरत्स्वच्छजलं पद्माकरसुगन्धिना। जल-क्रीड़ा के लिये स्वच्छ सुगन्धित जल का होना आवश्यक है। इसलिये श्रीवृन्दावन ने भगवान की क्रीड़ा के लिये आनन्द सामग्री को प्रस्तुत कर दिया। शरणऋतु के सम्बन्ध से श्रीयमुना, राधाकुण्ड आदि सरित सरोवरों के जल अत्यन्त स्वच्छ-निर्मल हो गये, और एक पद्म की कौन कहे, पद्म के आकार विकसित हुए। कुमुद-कुमुदिनी, कमल-कमलिनी के अनन्त समुदाय के मादक-मोहक दिव्य सौगन्ध्य से मिश्रित समीर द्वारा समस्त वृनरण्यधाम आविष्ट हो गया - गमक उठा। पद्म का सौगन्ध्य बड़ा अलौकिक होता है। उसके आभोग, पत्र, पराग, मधु आदि में भी विलक्षण सौगन्ध्य, सौन्दर्य, सौरस्य होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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