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भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
भगवान का मंगलमय स्वरूप
भगवान की कामकलभशुण्ड के समान सुडौल, गोल, सुन्दर चढ़ाव-उतारवाली दिव्य उज्ज्वलनील भुजाओं पर भी अन्य अंगों के समान ही कुंकुम-कस्तूरी-मिश्रित शरच्चद्रमरीचिवत् दिव्य हरिचन्दन का लेप है। उस पर उज्ज्वल सुवर्ण-कंकणों और बाजूबन्दों की उज्ज्वल पीतिमा भी कुछ-कुछ प्रतिबिम्बित हो रही है। हाथ के पंजों के साथ ये हाथ ऐसे मालूम हो रहे हैं जैसे दिव्यलोक के पन्चशीर्ष नाग हों। ये पाँचों उँगलियाँ उन्हीं के पन्चशीर्ष जैसे हैं और इन उँगलियों में जो नख हैं वे पन्चशीर्ष नागों के शीर्षस्थ मणियों के समान ही चमक रहे हैं। करतल की सुकोमल अरुणिमा अरुण कमल की सी ही विकसित हो रही है और करपृष्ठ सर्वांग के समान ही उज्ज्वल नील हैं और उन पर कुंकुम-कस्तूरी-मिश्रित दिव्य हरिचन्दन की चाँदनी छिटक रही है। उँगलियों की सन्धि में अरुणिमा और नीलिमा का तारतम्य है। पृष्ठभाग से संलग्न सन्धि का सूक्ष्म भाग अधिकतर उज्ज्वल नील और तल संलग्न सन्धिभाग अरुणिमा-विशिष्ट है। भगवान अपने इन अरुण करतलों में अपना शंख लेकर जब बजाते हैं तब यह धवलोदर शंख अरुणायमान होकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे इन दो अब्जखण्डों के बीच कोई कलहंस कलनाद कर रहा हो। श्रीभगवान के दिव्य श्रीमुखाम्बुज में कुंकुम-मिश्रित हरिचन्दन के नाना भावपूर्ण नानाविध चित्र ललाट, कपोल, चिबुक और करों पर भावुक लोग चित्रित करते हैं। उज्ज्वल नील मुखाम्बुज, उस पर मकरन्द-पान के लोभी मधुपों की नीलिमा, मकराकृत कुण्डलों की चंचल दीप्तिमत्ता और किरीट की दिव्यातिदिव्य शोभा और इन्हीं विविध आभाओं के भीतर कुंकुम-कस्तूरी-मिश्रित दिव्य हरिचन्दन के परम मनोरम चित्र मिलकर ऐसी शोभा उत्पन्न करते हैं जिसका शब्दों द्वारा वर्णन नहीं हो सकता। उसका समास्वादन तो भावुकों को ही होता है। दिव्य सौन्दर्य सम्पन्न मुखाम्बुज तो मुखाम्बुज ही है, भगवान के दिव्य करों की छटा को भी कोई लेशमात्र ही देख ले तो उसके दुःख गर्भ सारे सांसारिक सुख ही छूट जायँ। इस प्रसंग में श्री राधावल्लभजी के मन्दिर में एक वेश्यासक्त राजकुमार की कथा प्रसिद्ध है। यह राजकुमार इतना वेश्यासक्त था कि उस वेश्या का एक क्षण के लिये भी विरह नहीं सह सकता था। वेश्या सामने न हो तो वह खा-पी नहीं सकता था और न कोई काम कर सकता था। उसकी वेश्यासक्ति छुड़ाकर उसे भगवद्भक्ति प्राप्त करा देनी चाहिए, ऐसी अनुकम्पा सम्प्रदाय के आचार्य श्री के हृदय में हुई। उन्होंने राजकुमार को अपने यहाँ लिवा लाने का प्रबन्ध किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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