भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
संकल्पबल
ईसाई, पारसी, मुसलमान, यहूदी, चीनी, जपानी, बौद्ध, जैन आदि भी मन्त्रों की महिमा और उनके जप से शान्ति, चमत्कार पारलौकिक लाभ मानते हैं महात्मा तुलसीदास लिखते हैं-
छोटा-सा भी अकुश महामत्त गजराज को वश में रखता है। परम लघु मन्त्र विधि-हरि-हर को वश में कर लेता है। जैसे संसार के विविध तृणों में विचित्र शक्तियाँ होती हैं, कोई तृण किसी रोग को दूर कर सकता है, कोई किसी रोग को। एक-एक तृणों में कैसी-कैसी शक्तियाँ है, इसका पता लगाना सिवा योगियों के औरों को कठिन है। पुनश्च किन-किन तृणों के मिलने से कितनी और किन-किन शक्तियों को विकास होगा, किन-किन तृणों के मिलने से किनका विघटन होगा, यह जानना भी कठिन ही नहीं, अवग्दिर्शी लोगों के लिये यह असंभव ही है। ऐसे स्थलों में सर्वज्ञ वैदिक ऋषियों के ग्रन्थों से ही उन-उन मूलों, औषधों का गुण, महत्त्व आदि जाना जा सकता है। उसी तरह वर्णों की भी बात है। वर्णों से मेल-जोल के भेद में अर्थों में भेद होता है। किन्हीं वर्णों के संश्लेल-विश्लेष से किन्हीं शक्तियों का ह्रास और किन्हीं का विकास होता है। पचास वर्णों के ही संश्लेष-विश्लेष से दुनिया की अपरिगणित ग्रन्थराशि तैयार हुई है। वर्ण वही हों परन्तु उनके संश्लेषवैचित्र्य से अर्थ में भेद हो जाता है। राजा-जारा, नदी-दीन इत्यादि स्थलों में वर्णों में भेद न रहने पर भी संश्लेष में भेद होने से अर्थ में भेद हो जाता है। संश्लेष-विश्लेष के कारण ही उन्हीं वर्णों से भिन्न-भिन्न भाषाएँ बनीं। वर्णों के जोड़-मेल के वैलक्षण्य से ही भाषण और ग्रन्थों में वैलक्षण्य होता है। एक छोटी-सी पुस्तक बड़े मूल्य में मिलती है, कोई बड़ी बड़ी-सी पुस्तक भी साधारण मूल्य में प्राप्त होती है। किसी भाषण का साधारणा ही मूल्य होता है, किसी शास्त्ररहस्यज्ञ विद्वान या वकील-बेरिस्टर के भाषण का मूल्य चमत्कारमूलक ही है। |
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