भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्री भगवती-तत्त्व
शिवपरात्पर निवृत्ति, प्रतिष्ठा, विद्या, शान्ति, इंधिका, दीपिका, रोचिका, मोविका, परा सूक्ष्मा, सूक्ष्मामृता, ज्ञानामृता, अमृता, आप्यायिनी, व्यापिनी, व्योमरूपा, तीक्ष्णा, अनन्ता, सृष्टि, ऋद्धि, स्मृति, मेधा, क्रान्ति, लक्ष्मी, द्युति, स्थिति, सिद्धि, जड़ा, पालिनी, शान्ति, ऐश्वर्या, रति, कामिका, वरदा, आह्लादिनी, प्रीति, दीर्धा, रौद्री, निद्रा, तन्द्रा क्षुधा, क्रोधिनी, पुष्टि, तुष्टि, धृति, चन्द्रिका आदि सृष्टि चिद्घनमहासमुद्र की अनन्त शक्ति स्वामिनी ही भगवती है। ‘अगस्त्यसंहिता’ के वचनानुसार भगवान शिव ने श्रीराम के प्रत्यक्ष साक्षात् करने लिय बड़ी तपस्या और आराधना की। भगवान राम ने प्रसन्न होकर कहा कि यदि मेरा तत्त्व जानना चाहते हो तो मेरी आह्लादिनी पराशक्ति की आराधना करो, उसके बिना मेरी स्थिति नहीं हेती-
यह सुनकर श्री शिव जी ने भगवान की आराधना की। भगवती ने कृपा कर उन्हें दर्शन दिया। उनके अद्भुत रूप को देखकर उन्होंने अति भक्ति से दिव्य स्तुति की-
करुणा तो शिव, विष्णु आदि सभी देवों में होती है, परन्तु परमकल्याणमयी, करुणामयी तो श्री अम्बा ही है। कुपुत्र पर भी अम्बा की करुणा ही रहती है- ‘‘कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति।।’’ शत्रु से निष्ठुरता पूर्वक युद्ध करते हुए भी माँ के हृदय में शत्रुओें पर भी कृपा रहती है। उनको बाणों से पवित्र करके दिव्यलोक मे भेजती है। वास्तव में सब माँ के पुत्र हैं, शत्रु कौन है?- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज