योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
छठा अध्याय
रासलीला का रहस्य
तब गोपियाँ अपने वस्त्र उनसे माँगने लगीं और हाथ जोड़कर विनती करने लगी। तब कृष्ण ने कहाँ कि- 'नंगी मेरे सामने आओ तो दूँगा।' अतः वे सब नंगी[1] उनके सामने आई तब उन महाशय ने उनके वस्त्र लौटा दिये।" आजकल के पौराणिक टीकाकार इसका सार यों निकालते हैं कि यहाँ 'कृष्ण' शब्द परमेश्वर के लिए प्रयुक्त हुआ है। यमुना से तात्पर्य परमेश्वर का प्रेम और गोपियों के वस्त्र से अभिप्राय सांसारिक पदार्थों से हैं। अतः इस कथा से यह भाव निकलता है कि परमात्मा के प्रेम में मग्न होकर मनुष्य को चाहिए कि किसी सांसारिक पदार्थ का विचार न करें, वरन् उसका ध्यान छोड़ दे। पर खेद है कि मनुष्य प्रेम की नदी में स्नान करके भी उन्हीं पदार्थों के पीछे दौड़ता है परमात्मा उसे पश्चात्ताप दिलाने हेतु उन पदार्थों को उठा लेता है जिससे उसका संबंध है। यहाँ तक कि वह मनुष्य अपने ईष्ट पदार्थों के लिए कोलाहल मचाता है। परमात्मा उनकी पुकार सुनकर उसे अपने समीप बुलाता है। जब वह वस्त्रहीन आने में संकोच करता है तो परमात्मा उसको यह उपदेश करता है कि मेरे समक्ष नग्न आने में संकोच मत कर। मेरे पास आने में अपना तन वस्त्र से ढकने की आवश्यकता नहीं। स्वयं को सांसारिक पदार्थों से पृथक कर मेरे पास आ। तब मैं तेरी सारी कामनाएँ पूरी करूगाँ और तन ढकने का वस्त्र दूँगा। यह वाक्य रचना चाहे कितनी ही उत्तम क्यों न हो पर इससें भ्रम पड़ने की आशंका हैं। यदि इन सब कथाओं में ऐसी अत्युक्ति बाँधी गई है तो हमारी राय है कि इन अत्युक्तियों ने हिन्दुओं को बड़ी हानि पहुँचाई है और उनके आचार व्यवहार को भी बिगाड़ दिया हैं। परमेश्वर के लिए अब उनको छोड़ो और सीधी रीति से परब्रह्म परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित होकर भक्ति और प्रेम के फूल चुनो। कम-से-कम कृष्ण जैसे महापुरुष को कंलकित मत करो। और किसी विचार से नहीं तो अपना पूज्य और मान्य समझकर ही उन पर दया करो। उन्हें पाप क्रम का नायक मत बनाओ और उन महानुभावों से बचो जो इस महापुरुष के नाम पर तुम्हारा व्रत बिगाड़ रहे हैं और तुम्हारी ललनाओं को नरकगामी बनाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वस्त्रहीन
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