योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
7. पुराणों की प्राचीनता
प्रोफेसर विल्सन[1] का मत है कि विष्णुपुराण में इस बात के बहुतेरे प्रमाण मौजूद हैं कि उसमें दसवीं शताब्दी ईस्वी तक के वृत्तान्त पाये जाते हैं। तथापि भागवत तथा अन्य पुराणों की अपेक्षा विष्णुपुराण अधिक प्राचीन है। भागवत के विषय में तो यह विवाद चला आता है, कि कौन-सी भागवत अठारह पुराणों में गिनती करने योग्य है? श्रीमद्भागवत या देवी भागवत? वैष्णव अपनी भागवत को वास्तविक पुराण बतलाते हैं और शाक्त अपनी पुस्तक को। यूरोपीय विद्वानों का मत है कि श्रीमद्भागवत तेरहवीं शताब्दी ईस्वी में लिखी गई है। जो कुछ विद्वानों की दृष्टि में भागवत से विष्णुपुराण अधिक प्राचीन है, तथा उसमें अलंकार का मिश्रण भी कम होने से उसकी बातें अधिक विश्वसनीय मानी जाती हैं। इसके अतिरिक्त औरों की अपेक्षा विष्णुपुराण इस योग्य है कि घटनाओं के अनुसंधान की नींव उसी पर रखी जाये। रचना-काल की दृष्टि से हरिवंश, ब्रह्मवैवर्त और ब्रह्मपुराण भी विष्णुपुराण से पश्चात के माने जाते हैं। प्रोफेसर विल्सन की सम्मति है कि ब्रह्मवैवर्त गोकुलिए गोसाइयों की रचना है और 15वीं शताब्दी ईस्वी से पीछे की लिखी हुई है। अब रहा महाभारत, सो उसके विषय में याद रखना चाहिए कि वर्तमान महाभारत असली महाभारत नहीं है। या यों कहो कि कोई यह नहीं बता सकता कि वर्तमान महाभारत में कितने श्लोक असली हैं और कितने प्रक्षिप्त अर्थात बाद में मिलाये गए हैं। जैसे पुराणों के विषय में साधारणतः यह कहा जाता है कि वे वेदव्यास जी के बनाए हुए हैं वैसे ही महाभारत के विषय में भी यही कहा जाता है। परन्तु जैसा हम ऊपर कह आये हैं कि कम-से-कम वर्तमान पुराण व्यास के रचे हुए नहीं हैं वैसे ही हमारे पास इस बात के भी बहुत-से प्रमाण हैं कि आधुनिक महाभारत का कुल अंश व्यास जी का लिखा हुआ नहीं है। स्वयं महाभारत के आदिपर्व से प्रतीत होता है कि व्यास जी ने असल महाभारत रचकर वैशम्पायन को सुनाया, जिसने लोमहर्षण को उसकी शिक्षा दी और जिससे उसके पुत्र उग्रश्रवा ने उसे सीखा। आधुनिक महाभारत के पहले दो श्लोकों में ग्रन्थकर्ता[2] लिखता है कि वह उस महाभारत को लिखता है जो उग्रश्रवा ने कुलपति शौनक के यज्ञ[3] में ऋषियों के सम्मुख सुनाई थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जिन्होंने विष्णुपुराण का अंग्रेजी अनुवाद किया है।
- ↑ जो अपना नाम नहीं प्रकट करता।
- ↑ बारह वर्ष के यज्ञ
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