योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 33

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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7. पुराणों की प्राचीनता


परन्तु इस समय भी उनकी अवस्था ऐसी शोचनीय है कि उनमें से यथाक्रम किसी घटना को निकालना दुर्लभ प्रतीत होता है। प्राचीन आर्य सभ्यता का विद्यार्थी जिसने उपनिषदों की अद्वितीय विद्या तथा दर्शनों का अध्ययन करके प्राचीन आर्यों की सभ्यता के उत्कर्ष का विचार किया है, वह जब पौराणिक साहित्य तक पहुँचता है तो यकायक उसके भीतर से ठंडी साँस निकलती है। यदि उसका आर्यो के नाम से कोई संबंध है या उसकी देह में उन्हीं प्राचीन आर्यो का रक्त है, जिन्होंने रामायण और महाभारत काल में प्रसिद्धि पाई थी तो स्वतः ही उसके नेत्रों से आँसुओं की धारा वह निकलती है और वह चिल्ला उठता है- ‘हाय! हम कहाँ आ गये। वैदिक ऋषियों की सन्तान! जिन्होंने दर्शन शास्त्रों की रचना की थी, उनकी ही सन्तान फिर पुराणों और तंत्रों की रचयिता बनी है!’

कदाचित आपके मन में यह प्रश्न उपस्थित हो कि श्रीकृष्ण के जीवनचरित्र का पौराणिक विषय के वादानुवादों से क्या प्रयोजन है, तो हमारा उत्तर यह है कि दुर्भाग्यवश श्रीकृष्ण का वह जीवन-वृत्तान्त जो कुछ लोगों को विदित है, अथवा हो सकता है, उस सबका आधार पौराणिक साहित्य ही है। पुराणों ने जातीयता को नष्ट कर मानुषी जीवन को निर्बल बनाने और उसे नीति तथा आध्यात्मिक स्थिति से गिराने में जो काम किया है वह सबसे अधिक उसी महान पवित्रात्मा से संबंध रखता है, जिनकी संक्षिप्त जीवनी लिखने के हेतु हमने आज लेखनी उठाई है।

श्रीकृष्ण पर पुराणों ने क्या-क्या अत्याचार नहीं किये हैं? यहाँ तक कि संसार के एक महापुरुष को अपने क्षुद्र भावों के तीरों से ऐसा बेधित किया कि उसकी सूरत ही बदल गई है। इन्हीं पुराणों के कृपाकटाक्ष से अधिकांश आर्य जनों का मन श्रीकृष्ण की ओर से ऐसा फिर गया है और वे उन्हें विषयी और अपवित्र समझने लगे हैं। उसी पौराणिक शिक्षा के कारण बहुत से आर्य शिक्षा पाकर मुसलमान और ईसाइयों के जाल में जा फँसे। कई बार अच्छे-अच्छे सुशिक्षित पुरुषों के मुख से सुना गया है। कि इस धर्मभूमि की समस्त अवनति और आपदाओं के मूल में श्रीकृष्ण ही हैं, जिन्होंने अपनी निकृष्ट शिक्षा से महाभारत का युद्ध कराया और देश को अस्तव्यस्त किया।

जब हम किसी आर्य सन्तान के मुख से महात्मा कृष्ण के विषय में ऐसे अपमानसूचक शब्द सुनते हैं, हमारा कलेजा मुँह को आ जाता है। परन्तु इन बिचारे नई सभ्यता वालों का क्या अपराध है। पौराणिक गप्पों ने उन्हें इस प्रकार चक्कर में डाल दिया है, जिससे उनके लिए अपने जातीय साहित्य से सत्य और असत्य को पृथक करना असम्भव प्रतीत होता है। हमारे इस कथन का यह तात्पर्य नहीं है कि पुराणों में सत्य का लेश भी नहीं। हमारा तो मत है कि हमारी जाति का इतिहास कदाचित कुछ पुराणों में भी मिल सके। परन्तु उपमा आदि अलंकार, यार लोगों की मनघड़न्त और हर पीढ़ी के पंडितों के स्वेच्छाचार का इस साहित्य पर इतना अधिकार है कि उसमें से सच्ची घटनाओं का निकालना यदि असम्भव नहीं तो बहुत ही कठिन है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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