भागवत स्तुति संग्रह पृ. 92

भागवत स्तुति संग्रह

पहला अध्याय

बाललीला
षष्ठ प्रकरण
पौगण्डावस्थालीला
उत्तरार्ध

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इंद्र तथा कामधेनुकृत स्तुति

खेल में विजयी हुए श्रीदामा को भगवान् ने, वृषभ को भद्रसेन ने और बलराम जी को प्रलम्बासुर ने अपनी-अपनी पीठ पर चढ़ाया। उस समय प्रलम्बासुर बलराम जी को नियत स्थान (भाण्डीर वृक्ष) से आगे ले जाने लगा। किन्तु बलराम जी उसको पर्वत समान भारी प्रतीत होने लगे और वह असुर वेग से न चल सका। असुर ने विचार किया कि गोप स्वरूप से चलना कठिन है; तब तो उसने अपना बड़ा विकराल दैत्यस्वरूप प्रकट किया। यह देखकर बलराम जी ने अपनी मुट्ठी से उसके मस्तक में कठोर प्रहार किया। प्रलम्बासुर मस्तक फूट जाने से मर गया।

भगवान ने केवल राक्षसों का ही उद्धार नही किया, किन्तु देवताओं के भी गर्व का नाश किया।[1] उस समय वृन्दावन में यह प्रथा थी कि इन्द्र को संतुष्ट करने के लिए एक विशाल यज्ञ किया जाता था। इंद्र वर्षा के स्वामी हैं और यज्ञ से प्रसन्न होकर वृष्टि द्वारा सकल प्राणियों का उपकार करते हैं।

नन्द जी भगवान् के ऐश्वर्य को नही समझ सके। वे सकल कर्मफलदाता भगवान को केवल बालक ही समझते थे। उधर इन्द्र को भी यह अभिमान हो गया था कि ‘मुझसे बढ़कर या मेरे ऊपर दूसरा विधाता नहीं है’। जब यज्ञ के लिए बड़ी-बड़ी तैयारियाँ हो रही थीं, विविध प्रकार के अन्न आदि इकट्ठे किए जा रहे थे तब नन्द जी के प्रति भगवान ने भाषण किया।

‘पिता जी! सकल प्राणी जन्मान्तर में किये गये कर्म के अनुसार उत्पन्न होते हैं और कर्म के अनुसार ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं। सुख, दुःख, भय और कल्याण भी उन्हें कर्म से ही प्राप्त होते हैं। (यहाँ मीमांसाशास्त्र का अनुसरण करके कहा है कि कर्म स्वतः फल देने में समर्थ हैं) ईश्वर कर्मफलदाता नहीं माना जा सकता, क्योंकि ईश्वर भी कर्मानुसार ही फल देता है। यदि कर्म न करे तो ईश्वर उसे कोई फल नहीं दे सकता; अतः ईश्वर अजागलस्तनवत निरर्थक हुआ। इस कारण प्राणियों को सुख-दुःख उनके पूर्व-कर्मों से (स्वभाव से) प्राप्त होते हैं और इन्द्र भी कर्म-फल में हेर-फेर करने में समर्थ नहीं है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इस समय भगवान् की अवस्था 7 वर्ष की थी। भा. 10।57।16

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भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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