विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
चौथा अध्याय
द्वारकालीला
दशम प्रकरण
महाभारत के युद्ध का अंत
कुन्तीकृत स्तुति
(शंका- मैं तो देवकी का पुत्र हूँ, इस प्रकार मेरी स्तुति क्यों करती हो? समाधान-) मैं आपको कालरूप समझती हूँ, देवकी का पुत्र नहीं समझती क्योंकि आप सबके नियन्ता, आदि अंत रहित, विभु, सर्वत्र समभाव रखने वाले हैं (मैं तो अर्जुन का सारथी हूँ मुझ में समभाव कैसे बन सकता है? समाधान-) प्राणियों में जो कलह होता है वह उनकी विपरीत बुद्धि से होता है, उसका आप से कोई संबंध नहीं है।।28।। हे भगवान! आपका कोई प्रिय या शत्रु नहीं है इससे मनुष्यों में आपकी विषम बुद्धि नहीं है (अर्थात आप पाण्डवों के मित्रों पर अनुग्रह और शत्रुओं का निग्रह नहीं करते)। अवतार लेकर मनुष्यों के अनुसार आपके कर्म करने पर भी यह समझ में नहीं आता कि आपके मन में क्या करने की इच्छा है?।।29।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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