विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
चौथा अध्याय
द्वारकालीला
षष्ठ प्रकरण
भगवान् का गार्हस्थ्य जीवन
नारदकृत स्तुति तथा बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र
भगवान द्वारका में अपना गार्हस्थ्य जीवन व्यतीत कर रहे थे। नारद जी को यह जानने की इच्छा हुई कि भगवान ने नरकासुर के वध के उपरान्त इतनी स्त्रियों के साथ विवाह किया। उनके साथ गृहस्थ्य धर्म कैसे चला रहे हैं। नारद जी द्वारका में आये और रुक्मिणी जी के महल में गये। वहाँ देखा कि भगवान पलंग पर लेटे हैं और रुक्मिणी पंखा कर रही हैं। भगवान ने उठकर नारद जी को प्रणाम किया और यथाविधि पूजा की। नारद जी ने भगवान की स्तुति की जो इस प्रकरण के आदि में लिखी गयी है। फिर नारद जी किसी दूसरी स्त्री के महल में गये, वहाँ देखा कि भगवान उद्धव जी के साथ पाँसा (चौपड़) खेल रहे हैं। भगवान ने उठकर अभ्युत्थान किया और उपयुक्त शब्दों में उनका स्वागत किया। वहाँ से उठकर नारद जी तीसरे घर में गये और वहाँ देखा कि भगवान छोटे-छोटे बालकों को प्यार कर रहे हैं। तदनन्तर नारद जी ने किसी घर में भगवान को स्नान करते, कहीं ब्राह्मणों को भोजन कराते, कहीं ब्राह्मणों के भोजन करने के बाद शेष अन्न को खाते हुए, कहीं मौनव्रत धारण करके गायत्री जपते हुए देखा। कहीं घोड़ों तथा कहीं हाथियों पर और हाथ में ढाल-तलवार लेकर मृगया को जाते हुए देखा। कहीं उद्धव आदि मंत्रियों के साथ प्रजा के कल्याण के लिए सलाह सम्मति करते हुए, कहीं स्त्रियों के साथ जल क्रीड़ा करते, कहीं गोदान करते, कहीं एकान्त में बैठकर पुरुषोत्तम आत्मा का ध्यान करते और कहीं गुरुओं की वस्त्र आभूषणादि से सेवा करते देखा। कहीं पुत्रों के साथ, कहीं जामाताओं के साथ बैठे, कहीं यज्ञ करते, कहीं वेश बदलकर जाते हुए देखा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज