विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
चौथा अध्याय
द्वारकालीला
द्वितीय प्रकरण
श्रीकृष्ण जी के विवाह
भूमिकृत स्तुति
(शंका- इस विश्व की उत्पत्ति गुणों से और गुणों की उत्पत्ति प्रधान से होती है। पुरुष इनको क्षोफित (चालन) करता है और इसका भी निमित्त काल है। तब भगवान का इसमें क्या हाथ है? समाधान-) हे प्रभो! हे जगत्पते! तुम्हारी जब सृष्टि करने की इच्छा होती है तब उत्कट (कार्योन्मुख) रजोगुण को धारण करते हो, अर्थात् रजोगुण प्रधान ब्रह्मरूप होकर सृष्टि करते हो। तथा जगत का नाश करने में उत्कट तमोगुण को धारण करते हो अर्थात् रुद्ररूप होकर संहार करते हो। जगत के पालन करने के लिए उत्कट सत्त्वगुण को धारण करते हो अर्थात विष्णु का रूप धारण करके पालन करते हो। तथापि तुम उन गुणों से लिप्त नहीं होते हो। तुमसे काल, प्रधान और पुरुष व्यतिरिक्त नहीं है। तुम सबसे व्यतिरिक्त हो इस कारण तुम्हीं सबकी सृष्टि करने वाले हो।।29।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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