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अक्रूर जी द्वारा सगुण निर्गुणभेदों से स्तुति
उसी समय उन्होंने यमुना जी के भीतर एक स्थान में श्रीकृष्ण और बलराम जी को देखा। किन्तु जब उन्होंने अपना मस्तक जल से ऊपर उठाकर रथ की ओर देखा तो श्रीकृष्ण और बलराम को पूर्ववत रथ में बैठे पाया। अक्रूर जी ने यह देखने के लिए कि, मुझे जल के भीतर जो दर्शन हुआ था वह सत्य है या झूठ, फिर डुब की लगायी। अबकी बार वे क्या देखते हैं कि वहाँ नीले वस्त्र धारण किये श्रीशेष भगवान विराजमान हैं। उनके सहस्र मस्तकों में रत्नों से देदीप्यमान सहस्र किरीट सुशोभित हो रहे हैं। सिद्ध, चारण, गन्धर्व और असुर उनकी स्तुति कर रहे हैं तथा उनके कुण्डलाकार आधे शरीर पर भगवान पीताम्बर पहने हुए हैं और उनका वर्ण मेग के समान श्याम है। उनके चार भुजाएँ हैं, शान्त मुद्रा है, कमल के फूल के समान कुछ-कुछ लाल नेत्र हैं, प्रसन्न हास्ययुक्त मुख है, सुंदर भ्रुकुटी है, ऊँची नासिका है, सुंदर कान हैं, मनोहर कपोल हैं, लाल-लाल अधर हैं, घुटनों तक लम्बी और मांसल भुजाएँ हैं, ऊँचे कंधे हैं, उनके वक्षः स्थल में लक्ष्मी जी विराजमान हैं। काम्बु के समान कण्ठ है। गहरी नाभि है तथा पीपल के पत्ते के समान पेट है जिसमें तीन वलियाँ पड़ी हुई हैं। उनका कटितट अति विशाल है, सुंदर श्रेणी है, हाथी की सूँड़ के समान मनोहर जंघाएँ हैं- थोड़ी ऊँची एड़ी है, लाल-लाल नख हैं, बहुत से रत्नों से जड़ा हुआ किरीट है, तथा कड़े तोड़े, बाजूबन्द, मेखला, यज्ञोपवीत, हार और नूपुर आदि आभूषणों के कारण उनकी अपूर्व शोभा है। वे दाहिने हाथ में कमल और शेष तीन हाथों में शंख, चक्र, गदा धारण किये हैं।
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