विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
दूसरा अध्याय
माधुर्यलीला
पंचम प्रकरण
रासलीला
उत्तरार्ध
युग्मश्लोकी गोपीगीत
तब गोपियों ने सब जीवों के अंतर्यामी उन श्रीकृष्ण भगवान् को बैठने के लिए अपने ओढ़ने के वस्त्र दिये। वे उन पर बैठ गये। गोपियों ने भगवान् की पूजा की। उस समय वहाँ कोई प्राकृत काम की वार्ता नहीं हुई। गोपियों ने भगवान् की प्रशंसा की और उनके अन्तर्धान होने का अपराध उन्हीं के मुख से कहलाने के लिए वे बोलीं- ‘हे कृष्ण! कोई पुरुष अपनी सेवा करने वाले की बदले में सेवा करता है, कोई सेवा की अपेक्षा न करके सेवा न करने वाले की सेवा करता है, और कोई अपने प्रति उपकार करने वाले और न करने वाले किसी की भी सेवा नही करता, अब आप बताइये कि इन तीनों में क्या गुण और क्या दोष है?’ भगवान् ने कहा- ‘प्रथम प्रकार के पुरुषों की सेवा स्वार्थ के लिए होती है, इसी कारण उनमें सच्चा प्रेम और सच्चा सुख या धर्म नहीं होता है। दूसरे प्रकार के पुरुषों की दो कोटियाँ होती हैं, प्रथम दयालु, दूसरा प्रेमी, जैसे माता-पितादि। उनमें प्रथम कोटि के पुरुषों को धर्म प्राप्त होता है और द्वितीय कोटि वाले पुरुषों को केवल सौहृद (प्रेम), तीसरे प्रकार के पुरुषों की चार कोटियाँ हैं, आत्माराम, आप्तकाम, अकृतज्ञ और गुरुद्रोही अर्थात् निर्दयी।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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