विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
दूसरा अध्याय
माधुर्यलीला
चतुर्थ प्रकरण
रासलीला
पूर्वार्ध
गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति
आगे बढ़ीं तो उन्हें वह दूसरा चरणचिह्न दिखायी न दिया। तब कहने लगीं ‘मालूम होता है उस सखी को भी अभिमान हुआ होगा कि ‘मैं ही धन्य हूँ’ और उसी आवेश में भगवान से कहा होगा ‘हे कृष्ण! मैं हार गयी हूँ, आगे नहीं चल सकती, अतः जहाँ तुम्हें जाना हो मुझे अपने कन्दे पर चढ़ाकर ले चलो।’ तब वे गोपियाँ विचार करने लगीं कि सर्वदर्पहारी भगवान् उस गोपी को वहीं छोड़कर अंतर्धान हो गये होंगे। बात भी यही निकली। थोड़ी दूर पर वह गोपी भी इन्हें मिल गयी। तब ये सब गोपियाँ भगवान् को फिर वन के कोने-कोने में ढूँढ़ने लगीं और इनका अभिमान सर्वथा नष्ट हो गया। इस प्रकार जिनका अंतःकरण भगवदाकार हो गया है, भगवान् की ही वार्ता करने वाली भगवान् की ही लीलाओं का अनुकरण करने वाली तथा भगवान् के गुणों का गान करने वाली उन गोपियों को उस समय अपने घर का भी स्मरण नहीं रहा और वे फिर उसी यमुना की रेती में आकर भगवान् का गुणगान करने लगीं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
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