विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
दूसरा अध्याय
माधुर्यलीला
चतुर्थ प्रकरण
रासलीला
पूर्वार्ध
गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति
जब उनसे कोई उत्तर न मिला तो यह विचारकर कि- यह लता नम्र और परमगुणवती है, उससे पूछने लगीं ‘हे मालति! हे मल्लिके! हे चमेली! हे जूही! तुमने श्रीकृष्ण देखे हैं क्या? वे फूल लेने की इच्छा से हाथ के स्पर्श से तुम्हें प्रसन्न करते हुए कदाचित इधर से गये हों?’ जब कहीं से कोई प्रत्युत्तर नहीं मिला तो पृथ्वी से पूछने लगीं ‘हे वसुन्धरे! तुमने कौन सा तप किया है जो तुम श्रीकृष्ण के चरणस्पर्श के कारण तृण आदि के रूप में रोमांचित होकर शोभा पा रही हो? क्या तुम्हारी यह शोभा इसलिए है कि भगवान ने वामनरूप से तुम्हें नापा था या वाराहरूप से तुम्हें आलिंगन किया था इसलिए है?’ पृथ्वी से कोई उत्तर तो न मिला, किन्तु गोपियों ने उस पर भगवान् ध्वजा, कमल, वज्र, अंकुश और यवयुक्त चरणचिह्न देखा। गोपियाँ उस चरणधूलि को भगवान् के प्राप्त्यर्थ अपने शरीर में यह कहकर मलने लगीं कि ‘अहो! यह गोविन्द के चरणकमलों की धूलि अति धन्य है! जिसको सकल दोषों के दूर होने के निमित्त ब्रह्मा, शिव और लक्ष्मी अपने मस्तक पर धारण करती हैं।’ फिर उन्हीं चिह्नों को खोजती-खोजती आगे बढ़ीं, तो क्या देखती हैं कि एक अन्य चरणचिह्न भी है। यह देखकर मन में तर्क करने लगीं कि यह चिह्न किसी परम भाग्यवती सखी का है। अतः वे स्पर्धायुक्त कहने लगीं कि यह सखी एकान्त में भगवदानन्द प्राप्त कर रही है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज