भागवत स्तुति संग्रह पृ. 14

भागवत स्तुति संग्रह

पहला अध्याय

बाललीला
प्रथम प्रकरण
भगवान का अवतार[1]

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देवगणकृत स्तुति

अतः सिद्ध हुआ कि उपासना की अत्यंत आवश्यकता है, इसके किए बिना पुरुषार्थ बन ही नहीं सकता। अद्वैतशास्त्र के द्रष्टा आचार्यचरण ठौर-ठौर पर ऐसा कहते आये हैं कि- उपासना और वैदिक कर्म करने से अंतःकरण के आवरण और विक्षेप का नाश हो जाता है। इस कारण इनको अवश्य करते रहना चाहिए।[2] उपासना के प्रकार का इस प्रकरण के आदि में हम उल्लेख कर चुके हैं। उसकी एक कोटि भगवान के चरित्रों का स्मरण करना है। श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध में भगवान श्रीकृष्ण की पुण्य लीलाएँ कीर्तित हैं। वहाँ ये पूर्ण ब्रह्म अथवा पूर्ण ब्रह्म के अवतार कहे गये हैं। यदि माया का अस्तित्व और उसका भगवान् के आश्रित होना सिद्ध हो जाय तो इस पक्ष को मानने में कोई अड़चन नहीं हो सकती कि जब भगवान् की इच्छा होती है तब वे अपनी माया को स्वीकार करके इस लोक में अवतीर्ण होते हैं। यही है अवतार का रहस्य।

त्रेतायुग में कई ऐसे कारण जुड़ गये थे कि जिससे भगवान को माया का आश्रय लेकर अवतीर्ण होना पड़ा। एक कारण यह था कि पृथ्वी में राक्षस अधिक बढ़ गये थे, वैदिक धर्म की मर्यादा लुप्त होने लगी थी और साधुजन दुःसह दुःख पा रहे थे।[3] किन्तु यह प्रधान हेतु नहीं है। भगवान् को यह सामर्थ्य है कि वे अपने संकल्पमात्र से सब दुष्टों का नाश कर दें. ऐसी सामर्थ्य रहते हुए भी भगवान को उन भक्तों के हेतु अवतार धारण करना अथवा दर्शन देना पड़ता है जिनको यह इच्छा रहती है कि भगवान् मेरे पुत्र हों, पति हों अथवा सखा हों[4] और अपनी माया-शक्ति के द्वारा अवतार धारण करना कोई कठिन काम है नहीं। देखो प्रह्लाद के निमित्त उन्हें नृसिंह रूप में प्रकट होना पड़ा था। ऐसे ही जब पृथ्वी पर राक्षसों का अधिक बोझा बढ़ गया तो पूर्व में वर प्राप्त किए हुए देवकी और वसुदेव जी के यहाँ वे पुत्ररूप से प्रकट हुए। यह ध्यान में रखने की बात है कि जब भगवान श्रीकृष्ण रूप से प्रकट हुए तब उसी समय चतुर्भुजरूप से दर्शन देना, बंदीगृह के द्वारा खुल जाना, यमुना जी का जल भगवान के चरण छूते ही कम हो जाना इत्यादि कार्य महामाया के प्रसाद से संभव हैं ही।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भागवत पुराण 10।1 और 2
  2. विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभय सह। अविद्या मृत्युं तीर्त्वा विद्यामृतमश्नुते।। (ई. वा. 11) यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्।। (गी. 18।5)
  3. यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।। (गीता 4।7)
  4. परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।। (गीता 4।8)

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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