भागवत स्तुति संग्रह पृ. 122

भागवत स्तुति संग्रह

दूसरा अध्याय

माधुर्यलीला
द्वितीय प्रकरण
चीरहरणलीला

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ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति


गोप बिना अन्न प्राप्त किए भगवान् के पास गये। तब भगवान ने गोपों को फिर वहीं भेजा और कहा कि- ‘अबकी बार ब्राह्मणपत्नियों से अन्न माँगना। वे सदा मेरा ध्यान करती हैं; यज्ञशाला में तो वे केवल देहमात्र से हैं। तुम जितना चाहोगे उतना ही अन्न वे तुम्हें दे देंगी।’ बात यही थी कि नित्य भगवान् की कथा सुनने के कारण वे सदा ही उनका दर्शन करने से निमित्त उत्सुक रहती थीं। भगवान का संदेशा सुनकर वे चारों प्रकार के सुगंधयुक्त पदार्थ भिन्न-भिन्न पात्रों से लेकर पति, बंधु, भ्राता और पुत्रों के निषेध करने पर भी जैसे समुद्र की ओर नदी जाती है वैसे ही श्रीकृष्ण चंद्र की ओर चल दीं। वहाँ पहुँचकर देखती हैं कि भगवान का मेघ के समान श्याम वर्ण है, वे पीताम्बर धारण किये हुए हैं, गले में वनमाला, मस्तक पर मोरमुकुट, नाना रंगों से अलंकृत शरीर, कानों में सुंदर कोमल पत्ते उरझे हुए हैं। वे एक हाथ सखा के कंधे पर रखे हुए हैं और दूसरे हाथ से कमल को नचा रहे हैं, सुंदर कपोलों पर घुँघराली अलकें लटकी हुई हैं और मुखकमल मंद मसुकान से सुशोभित है। इस नटवर वेष को देखकर उन ब्राह्मणियों ने नेत्रों द्वारा श्रीकृष्ण भगवान का अपने अंतःकरण में प्रविष्ट करके चिर कालपर्यन्त आलिंगन किया। यह ऐसा आलिंगन था जैसा सुषुप्ति के समय अहंकार की वृत्तियाँ सुषुप्त के साक्षी प्राज्ञ का आलिंगन करके ताप को त्याग देती हैं; ऐसे ही इन ब्राह्मणियों ने संसार के ताप को त्याग दिया।[1] भगवान ने सुमधुर शब्दों से उनका स्वागत किया और उनसे लौटने को कहा ताकि यज्ञ की समाप्ति यथाविधि हो जाय।[2] ब्राह्मण-पत्नियाँ लौटने के लिए राजी नहीं हुई। वे अपने पति-पुत्रादि के निषेध करने पर भी भगवान् के पास आयी थीं अब कैसे वापस जायँ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यथा श्रुतिः ‘सुषुप्तिकाले सकले विलीने तमोऽभिभूतः सुखरूपमेति’ (कौ. 15) बात भी ठीक है- यदि किसी का हाथ टूट गया हो या कोई और बाधा हुई हो तो वह सुषुप्ति में उस बाधा का अनुभव नहीं करता।
  2. बिना अर्धांगिनी के काम्य यज्ञ करने का मनुष्य अधिकारी नहीं है।

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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