भागवत स्तुति संग्रह पृ. 121

भागवत स्तुति संग्रह

दूसरा अध्याय

माधुर्यलीला
द्वितीय प्रकरण
चीरहरणलीला

Prev.png
ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति


अब आगे इस विषय पर अधिक विचार करने की आवश्यकता नहीं। पाठक श्रद्धापूर्वक पढ़ने से समझ जाएँगे कि किस तत्त्व का प्रतिपदान यहाँ पर किया गया है और किस प्रकार यहाँ प्राकृत काम का लेश भी नहीं है। यह लीला इतने महत्त्व की है कि श्रीविश्वनाथ न्यायपञ्चानन भट्टाचार्य सिद्धांतमुक्तावली का मंगलाचरण ‘गोपियों के चीर चुराने वाले’ के रूप में इस प्रकार करते हैं कि ‘गोपियों के वस्त्र चुराने वाले नूतन मेघ के समान सुंदर संसारवृक्ष के बीजभूत श्रीकृष्ण को नमस्कार है।’[1]

इस प्रकार चीरहरणलीला करने के बाद भगवान् वन में गौ और गोपों के साथ विचरने लगे। दोपहर का समय था। ग्वालबाल क्षुधित हो गये। उन्होंने भगवान् से प्रार्थना की कि हम को भूख लगी हुई है। आप उसको दूर करने का उपाय कीजिए। भगवान् को अपनी परम भक्ता ब्राह्मण-स्त्रियों का स्मरण हो आया; अतः उन्होंने कहा कि ‘पास ही कुछ वेदज्ञ ब्राह्मण स्वर्ग प्राप्ति के निमित्त अंगिरस नामक सत्र कर रहे हैं, उनके पास जाकर अन्न माँग लाओ। वे यज्ञस्थान में गये और उन्होंने भगवान का नाम लेकर अन्न की याचना की। किन्तु ब्राह्मण यज्ञसमाप्ति के लिए पहले अन्न देने को उद्यत न हुए और ग्वालबालों को टाल दिया। अन्न देते हैं अथवा नहीं देते- ऐसा कुछ भी नहीं कहा, वे ब्राह्मण यह नहीं समझ सके कि चरुपुरोडाशादि भिन्न-भिन्न पदार्थ, मंत्र, तन्त्र (प्रयोग), ऋत्विक, अग्नि, देवता, यजमान, पात्र और फल उत्पन्न करने वाला धर्म- ये सब भगवान के ही स्वरूप हैं। भगवान उसी अन्न को चाहते हैं जो उनको अर्पण किया जाता है। वे ब्राह्मण यह भी नहीं समझ सके कि केवल कर्म से सिद्धि नहीं मिलती; उससे तो उलटा अंधतम नरक प्राप्त होता है। वेद प्रतिपादित सिद्धांत तो यह है कि जो कर्म और उपासना को साथ-साथ करता है वह कर्म से मृत्यु को तरता है और उपासना से अमृत का आस्वादन करता है।’[2]

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नूतनजलधररुचये गोपवधूटीदुकूलचौराय।
    तस्मै कृष्णाय नमः संसारमहीरुहस्य बीजाय।।1।।
  2. विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभय सह।
    अविद्या मृत्युं तीर्त्वा विद्यामृतमश्नुते।। (ई. 11)

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः