विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
दूसरा अध्याय
माधुर्यलीला
द्वितीय प्रकरण
चीरहरणलीला
ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति
इस प्रकार चीरहरणलीला करने के बाद भगवान् वन में गौ और गोपों के साथ विचरने लगे। दोपहर का समय था। ग्वालबाल क्षुधित हो गये। उन्होंने भगवान् से प्रार्थना की कि हम को भूख लगी हुई है। आप उसको दूर करने का उपाय कीजिए। भगवान् को अपनी परम भक्ता ब्राह्मण-स्त्रियों का स्मरण हो आया; अतः उन्होंने कहा कि ‘पास ही कुछ वेदज्ञ ब्राह्मण स्वर्ग प्राप्ति के निमित्त अंगिरस नामक सत्र कर रहे हैं, उनके पास जाकर अन्न माँग लाओ। वे यज्ञस्थान में गये और उन्होंने भगवान का नाम लेकर अन्न की याचना की। किन्तु ब्राह्मण यज्ञसमाप्ति के लिए पहले अन्न देने को उद्यत न हुए और ग्वालबालों को टाल दिया। अन्न देते हैं अथवा नहीं देते- ऐसा कुछ भी नहीं कहा, वे ब्राह्मण यह नहीं समझ सके कि चरुपुरोडाशादि भिन्न-भिन्न पदार्थ, मंत्र, तन्त्र (प्रयोग), ऋत्विक, अग्नि, देवता, यजमान, पात्र और फल उत्पन्न करने वाला धर्म- ये सब भगवान के ही स्वरूप हैं। भगवान उसी अन्न को चाहते हैं जो उनको अर्पण किया जाता है। वे ब्राह्मण यह भी नहीं समझ सके कि केवल कर्म से सिद्धि नहीं मिलती; उससे तो उलटा अंधतम नरक प्राप्त होता है। वेद प्रतिपादित सिद्धांत तो यह है कि जो कर्म और उपासना को साथ-साथ करता है वह कर्म से मृत्यु को तरता है और उपासना से अमृत का आस्वादन करता है।’[2] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ नूतनजलधररुचये गोपवधूटीदुकूलचौराय।
तस्मै कृष्णाय नमः संसारमहीरुहस्य बीजाय।।1।। - ↑ विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभय सह।
अविद्या मृत्युं तीर्त्वा विद्यामृतमश्नुते।। (ई. 11)
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