विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
दूसरा अध्याय
माधुर्यलीला
प्रथम प्रकरण
माधुर्य का प्रादुर्भाव
वेणुगीत
(कोई गोपी पक्षियों को देखकर कहती है-) हे मातः! अर्थात् हे सखि! यह आश्चर्य है कि इस वन में जो पक्षी हैं, वे मुनि ही हैं, वे पल्लवित फलहीन वृक्षों की शाखा पर दर्शन की अभिलाषा से बैठे हुए भगवान् की मुरली की ध्वनि को आँख मींचकर और अपने कोलाहल शब्द को छोड़कर सुनते हैं (भाव यह है कि जैसे मुनि वेदरूप वृक्षों की शाखाओं का अवलम्बन करके कर्मफल को छोड़कर सुंदर पल्लवरूप कर्मों को स्वीकार करके श्रीकृष्ण भगवान् को कथाओं को सुख से सुनते हैं ऐसे ही ये पक्षी भी हैं)।।14।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
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