भागवत स्तुति संग्रह पृ. 103

भागवत स्तुति संग्रह

दूसरा अध्याय

माधुर्यलीला
प्रथम प्रकरण
माधुर्य का प्रादुर्भाव

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वेणुगीत

नग्न होने में लज्जा उसी को होगी जो भगवान को अपनी आत्मा या अपना स्वरूप नहीं मानता। भगवान ने गोप-कन्याओं में इसी ज्ञान की दृढ़ता की थी। रासपंचाध्यायी में भी यही दिखाया गया है कि गोपियाँ भगवान को पूर्णब्रह्म समझती थीं और मुमुक्षुओं की भाँति सब कुछ त्यागकर वहाँ आयी थीं। इन दोनों लीलाओं का विशेष विवरण उचित स्थल में किया जाएगा, यहाँ अधिक लिखने से विस्तार हो जाएगा।

प्रस्तुत विषय- अब माधुर्यप्रकरण का उपोद्घात होता है। जो लीलाएँ अब तक हुईं, उनसे प्रकट होता है कि व्रजवासियों की भगवान में पूर्णरूप से आसक्ति थी। किन्तु वह आसक्ति अन्तर्हित थी, उसका प्राकट्य नहीं हुआ था। व्यास जी भी इस माधुर्यभाव को शनैः शनैः प्रकट करते हैं। वर्षा और शरद्- ऋतु में की गयी लीलाओं से यह बात स्पष्ट होती है कि गोपियों की आसक्ति भगवान में थी; परन्तु वह अव्यक्त थी। वहाँ शरद्- ऋतु प्रधान थी और आसक्ति गौण थी। अब उसी आसक्ति का बहिरुग्दम धीरे-धीरे माधुर्य-भक्ति के प्रकरणों से विदित होगा।

इसी शरद-ऋतु[1] भगवान ने एक दिन गौओं और गोपालों के साथ अपने चरण चिह्नों से अत्यंत रमणीय वृन्दावन में प्रवेश किया। गोपियाँ उस समय व्रज में थीं। उन्होंने बांसुरी की दिव्य कामोद्दीपक[2]ध्वनि सुनी। उनमें से एक गोपी अपने स्मरणानुसार सौंदर्य माधुर्यनिधि श्रीकृष्ण के दिव्य मंगल विग्रह का सखियों से वर्णन करने लगी। उसने कहा- भगवान का शरीर नट के समान सुडौल है, मस्तक पर मोरमुकुट और कानों में कर्णिकार के फूल शोभित हो रहे हैं, वे सुवर्णसदृश पीला पीताम्बर और वैजयन्ती माला धारण किये हुए हैं। गोपसमूह उनकी कीर्ति का गान कर रहा है और वे वंशी बजा रहे हैं।[3] प्रत्येक स्वर ऐसा मधुर निकलता है कि मानो भगवान ने वंशी के छेदों को अमृत से भर दिया है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भागवत के दशम स्कन्ध के बीसवें अध्याय में वर्षा और शरद् ऋतु का वर्णन बड़े रोचक वाक्यों से किया गया है।
  2. गोपियों का यह काम दिव्य प्रेम है। लौकिक काम नहीं। ‘प्रेमैव गोपरामाणां काम इत्यगमत् प्रथाम्।’
  3. मूल श्लोक इस प्रकरण के आदि में देखिए।

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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