गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
ग्यारहवां अध्याय
विश्वरूपदर्शनयोग
संजय उवाच संजय ने कहा- हे राजन! योगेश्वर कृष्ण ने ऐसा कहकर पार्थ को अपना परम ईश्वरीय रूप दिखलाया। अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम् । वह अनेक मुख और आंखों वाला, अनेक अद्भुत दर्शन वाला, अनेक दिव्य आभूषण वाला और अनेक उठाये हुए दिव्य शस्त्रों वाला था। दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्। उसने अनेक दिव्य मालाएं और वस्त्र धारण कर रखे थे, उसके दिव्य सुगंधित लेप लगे हुए थे। ऐसा वह सर्वप्रकार से आश्चर्यमय, अनंत, सर्वव्यापी देव था। दिवि सूर्यसहस्त्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता। आकाश में हजार सूर्यों का तेज एक साथ प्रकाशित हो उठे तो वह तेज उस महात्मा के तेज-जैसा कदाचित हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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