मधुराधिपतेरखिलं मधुरम 2

मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्'

श्रीमधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है। उनके अधर मधुर है, मुख मधुर है, नेत्र मधुर हैं, हास्य मधुर है, हृदय मधुर है और गति भी अति मधुर है ॥1॥
उनके वचन मधुर हैं, चरित्र मधुर हैं, वस्त्र मधुर हैं, अगंभगीं मधुर है, चाल मधुर है और भ्रमण भी अति मधुर है; श्रीमधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है ॥2॥
उनका वेणु मधुर है, चरणरज मधुर है, करकमलम मधुर हैं, चरण मधुर हैं, नृत्य मधुर है और सख्य भी अति मधुर हैं; श्रीमधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है ॥3॥
उनका गान मधुर है, पान मधुर है, भोजन मधुर है, शयन मधुर है, रूप मधुर है और तिलक भी अति मधुर है; श्रीमधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है ॥4॥
उनका कार्य मधुर है, तैरना मधुर है, हरण मधुर है, स्मरण मधुर है, उद्गार मधुर है और शांति भी अति मधुर है; श्रीमधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है ॥5॥
उनकी गुञ्जा मधुर है, माला मधुर है, यमुना मधुर है, उनकी तरगें मधुर हैं, उसका जल मधुर और कमल भी अति मधुर है; श्रीमधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है ॥6॥
गोपियाँ मधुर हैं, उनकी लीला मधुर है, उनका संयोग मधुर है, वियोग मधुर है, निरीक्षण मधुर है और शिष्टाचार भी अति मधुर है; श्रीमधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है ॥7॥
गोप मधुर हैं, गौएँ मधुर हैं, लकुटी मधुर है, रचना मधुर है, दलन मधुर है और उसका फल भी मधुर है; श्री मधुराधिपाति का सभी कुछ मधुर है ॥8॥


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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